मेरी कश्ती

कल तक तुम यही ही थे
के सावन घने ही थे
के जाने कहा से ये झोंका आया
तेजी से आया, चुपके से आया
काला डरावना सा झोंका
पीछे से दिया धोका
और…
अब तुम अकेले हो… हम अकेले है
कश्ती है, किनारे नहीं रहे
हम है, तुम्हारे सहारे नहीं रहे
हमें न जाने कौन से तूफान ने घेरा
हुआ यु चरों तरफ अँधेरा
के किनारा तो तुम थे, अब कहा जाए?
केवट तो तुम थे, नौका किधर घुमाये?
के जब तक तुम्हारी याद रहेगी
आग रहेगी, ये कश्ती चलेगी
और फिर डूब जाएगी
लेकिन खूब दूर जाएगी...
कल तुम्हारी याद आई
फिर दिखी कुछ परछाई
वो उस समुन्दर किनारे जब मै अकेला बैठा रहा
सूरज भी बादलों के पीछे छुपा ताकता रहा
सामने आकर सहारा न बना
धुआँ रहा चहु ओर तना
फिर कल वो हवाएँ भी न चली
अधमरी हुई मेरी वो जिंदगी मनचली
कोई लहरें भी न उठी
कोई आह न भरी
रेत में घर याद है तुम्हे?
कल वहाँ मेरा कोई न था
तुम्हारी यादों के शिवा
शायद फिर वो शामें न होगी
वो छाव न होगी
कुछ बातें न होगी
और ये तन्हाई
कहो तुम तो रहोगी?

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