कुछ समझ न आये है

एक जो ये चाह है
कुछ कर दिखाने कि
दबी दबी सी जाये है

जब देखा खुद को कड़घरे मे
पाया कि आसान है राजा बन कर आदेश देना
नजर न आता ऊपर से कुछ
और नीचे सास रुकि सि जाये है

कश्ति तो तैयार है
सवार भी है हम
बस किधर जाना कुछ समझ न आये है

देखा जब  इस चम्चमती हुइ भीड को
दिल कुछ तेज से धडक जाये है
भागे जा रहे ये लोग कहा
ये भेद कुछ खुल भी ना पाये है

जब भीड मे पाया खुद को अकेला मैने
ये भेद कुछ और अधिक गहराये है
जाने कौन सा मेला है ये
भगे जा रहे लोग कहा
जग मग तो कुछ नजर न आये है

एक जो ये चाह है मेरी
दबी दबी सी जाये है

वक़्त जो ये खिस्का जा रहा दबे पाव
रोक न पाऊ इसे
और मन पछताये है
रस्सी से जो खीञ्च रहा था इसे
कहा पकड मे आये बस फ़िसल हि जाये है

आगे बढ रहे की पीछे
न जाने कहा कौन सी खाई है
भगा जा रहा दबे पाव जो ये समय

हमे इस दुनिया मे फ़साये है

Comments

Popular posts from this blog

Our visit to Shanti Bhavan - Nagpur

Ride and the Kalsubai Trek

Why am I a Vegetarian?