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Showing posts from November, 2015

Purpose, What is the purpose?

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Purpose “Purpose of my life”, And I was terribly confused, concerned Crowd This crowd only deepens the confusion All, Many faces Looks same Money is the heart in the brain “I am trapped, trapped, trapped!” Aloud it was echoing in the mind Aloud, deep & hitting hard (Beep…beeps…beep…) “Aye, are you blind”, Reiterated one driver, When I lost the street to midway “Thank God!” “No we all are…”   I murmured and balanced myself People are coming back from cages, Oh sorry, work… (Radioactive! Radioactive! O o o o o…) I put on a song Blankly, unexcitingly I moved ahead Head half bent, hands in pocket kicking pebbles, lazily lying on the road.. Followed the same old path Turned around the same old buildings Silent black sky, Many rushing vehicles Tiresome life "It should snow here" Ok, Song over. I reached my room. While unlocking the door, few voices remained,  I thought again.. "Purpose, what is ...

A beautiful night...

It was late night, I was awake to the howling of the stray dogs down the street The lonely silence was no more alone I tried to wander in sleep again I couldn’t The yellowish night bulb Kept fluttering in the room in various ways The gear in the motor of fan kept on babbling Annoyingly I jerked off from the bed I missed silence Silence missed voices Through the window pane, I saw outside Silence was again engulfing the streets The stars kept on twinkling There were several of them And the cold breeze Hitting my naked chest I sat on the balcony chair To spend the night with Millions of stars, cool breeze And silence… Slowly I realized It was a night worth awakening & to feel grateful of In silence, I hear Mother Nature’s whisper Into my ears Her soft caress over my head I slept, thinking “What a beautiful night”

Life is a mystery

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This world is really strange. In every move of it, there lies a reason, a peculiarity and vivid strangeness. Moreover, one cannot ever say or believe the possibility of anything or a prediction in future of any kind, still many believes in astrology and sometimes it works. Less number of people has approached the solution of the mystery of the true purpose of life, this material world. It is said and believed in Hinduism, Christianity, Buddhism and other religions that either God himself or the messenger of God had incarnated in earth in form of human and other animals and had taught ways of living and facing situation in life. If we observe the world closely, several of humans will start to regret the way we have lived our life. Pondering in to the deep questions like, “What is life?” or “What is the purpose of life?” or “who is running the cycle of death and birth?” or “who really has created everything?” The questions are endless but answers are quite few and unproven. Some n...

Unburdening the Motherland

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Darkest night I had ever seen, No moon & stars up there, as if they were hiding. While I was getting back from my work Street lights were fluttering on-off in a strangely unusual way, not all, some Street was empty No birds or stray dogs or else  It was not mid night! The apartments were closed There was nothing but silence in the air It was hard to breathe, As I felt vacuum When I shouted, my voice didn’t come back no echoes Then I shouted hard.. “Where is all the rush today?” thinking, I was walking steadily, But hastening out of growing curiosity and fear Down the way, Saw the reflection of light on the street Reflection from the fresh blood I ran  No body seen visible Nothing at all, but fresh blood I ran fast, faster! fell once, balanced myself! Fell again! I was increasingly becoming curious and scared  I saw nothing but blood Blood! All over... But no body, no one! nothing! And it started rai...

इल्म हुआ, एह्साह भी

सन्नाटा वहीं, वहीं जो रूह को दहला देता है, आवाज़ वही, वही जो आसमान को सन्न कर दे, चुप कर दे… काँपने में मजबूर कर दे रौशनी वही, वही जो अँधेरा हर ले जाए, और जो हरने मात्र जलाई हो प्रेम वही, वही जो नफरत न रहने दे, बिलकुल भी नहीं कण मात्र भी नहीं जल वही, वही की, प्यास को प्यासा कर दे प्यास प्यासी हो जाए तुम्हारा साथ वही वही की जन्नत भुला जाए हां हां, वही एहसास वही, वो जीने का तरीका तरीका, की कोई तरीका न हो वही बस वही वादा करो, नहीं कसम खाओ की ऐसे ही रहोगे ऐसे ही ...

दिवाली का त्यौहार है ..

दिवाली का त्यौहार है .. वाह कितनी जगमग और झूम मची है लोगों ने घरों को सजा ही डाला है एक तरफ बारिश है, जो बरस कर सब कुछ साफ़ ही कर डालती है और एक तरफ दिवाली, जब लोग खुद ही सफाई करते है वो जो सिग्नल किनारे जो जगह है न, जो खाली थी वहाँ पर कुछ बेघर बच्चों ने, कुछ पेपर बिछा कर, अपना घरौना बना रखा है… आज उन्हें भी वहा अपने छोटे छोटे हाथों से धूल समेटते देखा पर उनके जो एक जोड़ी कपडे थे न वो भी धूल में सन गये… ठंडी भी आ गयी है वाह! की अब तो बड़ी सारी मिठाईयों की दुकाने सजी है कही दिए बिक रहे कही झालरें, और कही लक्ष्मी - गणेश की मूर्तियां वो जहा सेठ जी किलों भर मिठाईयां बेच रहे थे न वहा एक बच्चा आया अरे वही सिग्नल वाला धूल से सना हुआ बड़ी ही जोर से डाँट कर भगा दिया उसे वहाँ से गाली नहीं दी, देने वाले थे पर "सेंसिटिव" ग्राहक जो खड़े थे और फिर तो रात हो गयी वाह! वाह! दे फटाके पे फटाके! हजार वाली लड़ियाँ, रॉकेट्स, बोम्ब्स! वहाँ वो बच्चे भी, वहाँ अँधेरे में खड़े होकर सब कान लगाए सुन रहे थे,  और बेतहासा ख़ुशी से कूद रहे थे थोड़ा समय बाद ठण्ड बढ़ गयी थी ...

वो बच्चा पुकारता रहा ...

उसने  प्यारी सी आवाज़ में पुकार कर देखा, अपनी माँ को माँ ने सुना नहीं तो फिर पुकारा  इस बार ज़रा तेजी से, थोड़ा सहम कर, डर कर माँ ने फिर भी न सुना जकड़ी हुई थी उस मासूम को अपनी बाहों में  रोड के किनारे पड़े उस शव को, कोई देख न रहा था  अब बच्चा बिलबिला सा गया  और रोने लगा  प्यार से हाथ भी फेर रहा था, अपनी माँ के गालों में  लोगों को क्या पड़ी थी इससे  मदमस्त होकर चले जा रहे थे  घर जाकर अपना पसंदीदा टीवी सीरियल देखना था  कान में ठूसे थे ईरफ़ोन, रेडियो के कार्यक्रम सुनते हुए  जो नजर पड़ी तो मुँह फेर लेते थे  हाँ, कुछ लोगों ने देखकर पॉलिटिशियन्स को गाली बकि थी  और कुछ ने  माँ को बददुआ दी  क्या करती बेचारी माँ  अत्यंत भूख से मर गयी थी उस रात नींद में  बच्चे को वैसे ही जकड़ा रहा बाहों में  अभी घुटनों के बल ही चल सकता था वो तीन दिन तक, कभी रोता, और कभी थक कर सो जाता फिर वो भी, भूख प्यास से हारकर दम तोड़ दिया।।

मेरी कश्ती

कल तक तुम यही ही थे के सावन घने ही थे के जाने कहा से ये झोंका आया तेजी से आया, चुपके से आया काला डरावना सा झोंका पीछे से दिया धोका और… अब तुम अकेले हो… हम अकेले है कश्ती है, किनारे नहीं रहे हम है, तुम्हारे सहारे नहीं रहे हमें न जाने कौन से तूफान ने घेरा हुआ यु चरों तरफ अँधेरा के किनारा तो तुम थे, अब कहा जाए? केवट तो तुम थे, नौका किधर घुमाये? के जब तक तुम्हारी याद रहेगी आग रहेगी, ये कश्ती चलेगी और फिर डूब जाएगी लेकिन खूब दूर जाएगी... कल तुम्हारी याद आई फिर दिखी कुछ परछाई वो उस समुन्दर किनारे जब मै अकेला बैठा रहा सूरज भी बादलों के पीछे छुपा ताकता रहा सामने आकर सहारा न बना धुआँ रहा चहु ओर तना फिर कल वो हवाएँ भी न चली अधमरी हुई मेरी वो जिंदगी मनचली कोई लहरें भी न उठी कोई आह न भरी रेत में घर याद है तुम्हे? कल वहाँ मेरा कोई न था तुम्हारी यादों के शिवा शायद फिर वो शामें न होगी वो छाव न होगी कुछ बातें न होगी और ये तन्हाई कहो तुम तो रहोगी?

वो शाम...

वो शाम पीली लाल वाली जब सूरज थक कर सोने चले जाये तो जाते जाते अलविदा कह जाये कहे की कल फ़िर आऊंगा और मन इस वादे को भूल न पाये वो सूरज के जाते ही अन्धेरा होने लग जाये वो शाम पीली लाल वाली, और थोड़ी सी थडंक वाली वो जब तालाब के पानी के ऊपर कोहरा सा छाये उसे देख मन शान्त हो जाये हुम जो ठिठुर ठिठुरने से लग जाये और वो ठहाके, लोगों के वो जब सब अपने से लगने लग जाये हा वही शाम... वो ठंडी शाम पीली लाल, वो नीले आसमान के ऊपर लालिमा, और वो शाम गरम चाय वाली... जब परिंदे दूर दूर का सफ़र कर, पेड़ों पर वापस चले आये आराम करने लग जाये और वो चिड़िया जब चेहकने लग जाये फिर उसी पेड के नीचे हम आकर बैठे रह जाये हा वही लाल पीली, ठंडी सी शाम वो मासूम सी शाम वो शाम...

कुछ समझ न आये है

एक जो ये चाह है कुछ कर दिखाने कि दबी दबी सी जाये है जब देखा खुद को कड़घरे मे पाया कि आसान है राजा बन कर आदेश देना नजर न आता ऊपर से कुछ और नीचे सास रुकि सि जाये है कश्ति तो तैयार है सवार भी है हम बस किधर जाना कुछ समझ न आये है देखा जब  इस चम्चमती हुइ भीड को दिल कुछ तेज से धडक जाये है भागे जा रहे ये लोग कहा ये भेद कुछ खुल भी ना पाये है जब भीड मे पाया खुद को अकेला मैने ये भेद कुछ और अधिक गहराये है जाने कौन सा मेला है ये भगे जा रहे लोग कहा जग मग तो कुछ नजर न आये है एक जो ये चाह है मेरी दबी दबी सी जाये है वक़्त जो ये खिस्का जा रहा दबे पाव रोक न पाऊ इसे और मन पछताये है रस्सी से जो खीञ्च रहा था इसे कहा पकड मे आये बस फ़िसल हि जाये है आगे बढ रहे की पीछे न जाने कहा कौन सी खाई है भगा जा रहा दबे पाव जो ये समय हमे इस दुनिया मे फ़साये है