राशी

राशी पलंग से गिर गयी थी और बिलख बिलख के रो रही थी. उसकी आवाज़ सुनकर अम्मा कमरे में भागी भागी आयी और उसे ज़मीन में औंधे मुँह लेटा पाया. उसकी गहरी किलकारीयों को सुनकर अम्मा घबरा गयी और ज़ोरो से उन्होंने बाबूजी को पुकार लगाई. बाबूजी बस नहा कर के ही बाथरूम से साफ सुथरे निकले थे. वो राम नाम का जाप कर रहे थे. अम्मा की तेज़ बोली सुनके वो भड़भड़ा गए और राम नाम छोड़ कमरे की तरफ भागे. 

अम्मा ने राशी को फर्श से उठाकर सीने से चिपका लिया था. राशी की आवाज़ बहुत तेज़ थी जिससे अम्मा और बाबूजी भयभीत हो गए थे. बाबूजी इधर से उधर दौड़ दौड़ कर और गोहार मारकर जाने किस डर से रोने लगे. उनकी आवाज़ किचन की खिड़की से दौड़ती, चीड़ती-फाड़ती घर के दूसरे तरफ पहुंची जहाँ पर शिव जी के अभिषेक की तैयारी की जा रही थी. वही पर सभी लोग जमा थे. उन्हें पता पड़ने पर शिव जी को अकेला छोड़ सभी राशी के पास भागे. 

सूरज आधा आसमान लांघ चुका था और चमचमा रहा था. कमरे में उमस और गर्मी थोड़ी बढ़ गयी थी. सबने रोती चिल्लाती राशी को घेर लिया और परेशानी से अधमुहे देखने लगे. 

राशी अभी बस चार महीने की हुई थी. वो जब खेलती हसती हैं तो उसके गालों में दो छोटे से समुन्दर आ जाते हैं. कई दिन एक तरफ लेटे रहने के बाद वो अब उलटा पलट जाती हैं और घुटनो को काम में लगाने में भी तत्पर रहती हैं. वो पलंग से शायद यही करतब करते हुए गिरी थी. उसके नन्हे शरीर में कोई भी बाहरी चोट का निशान नहीं था, ना कोई भी खरोच ही थी. उसके माथे में हल्दी का लेप लगाया गया क्यूकी सबको लगा की शायद वहाँ पर चोट आयी हैं. उसे पुचकार के शांत कराने की कोशिश की गयी. वो गिरने से डर गयी थी, इसलिए ही रो रही थी. बुआ बोली की बच्चे गिर जाए तो उन्हें रोने दो, सुलाओ मत. वो थोड़ी देर में ब्रेक लगी गाड़ी की तरह धीरे धीरे शांत हो गयी. कमरे में उपस्थित सभी उसे चुप्पी भरी निगाहों से सेकते रहे. उसने चीखना बंद किया. लेकिन सिसकियों के गुब्बारे भारती रही आयी.

शाम को जब उसे वापस देखने गया तो वो अपने नीले रंग की पालकी में नींद से उठी राशी 'आ आ' करके कोई गीत मस्ती से गुनगुना रही थी. सूरज ठंडा हो गया था और आसमान के एक सिरे को स्वर्णिम रंगों से तिलकित किये था. 

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