भगत
उनके आँखों के नक्से
धधकती आग और चस्के
फफकता जुनून और कायलता
गिरेबान का रौब और राग
आगजनी पे तरारा
घृणा से मुहब्बत
सरफ़रोशी के इरादे
और मुकामों के पहाड़
क्या उम्र हरा पायी?
क्या समय मार पाया?
क्या हवा बहा पायी?
भगत, ओ भगत!
कितने जिन्दा हो जी..
तेईस साल का भगत, कभी इतने ख्यालों में डाल देता हैं की शरीर शिथिल पड़ जाता हैं. ये किस तरह की मर मिटने की आरज़ू थी की जीवन को ठुकराते हुए आये और गए. ना किसीकी जात पूछी, ना किसीका मज़हब जाना, ना कोई पद की कामना. जिए तो धमाल किये. मरे तो मिसाल बने. मिट्टी से इतना लगाओ!
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