थोड़ी देर में नींद...

सुबह होने वाली थी. करीब करीब ४ बज गए थे. नींद तो आने से थी और इंटरनेट की गति खूब साथ दे रही थी. एकाएक एहसास हुआ की जल्दी नहीं सोया तो सुबह खराब हो जायेगी. इसलिए कमरे की बत्ती बुझाई और लैपटॉप के कार्यक्रम को इस्थगित किया. मूत्र विसर्जन के पश्चात कमरे में वापस आकर पंखे की गति तेज की. फिर अपने फ्लोर में पड़े हुए गद्दे की ओर आत्मीयता से बढ़ा. इन सब के दौरान, अपने मोबाइल फ़ोन को हाथ में ही रखा. ऐसे ही आदत से मजबूर था और अब तो मोबाइल फ़ोन जिस्म का एक अंग बन चुका है.

अब मै बिस्तर के गले लग चूका था. लेकिन नींद का एहसास अभी भी नहीं हो रहा था. सोच में था की आज नींद क्यों नहीं आ रही. कहा रह गयी, अब तक तो आ जाती थी. जब और समय बीता तो बेचैन होकर मोबाइल को पुनः उठाकर उसमे समय देखना चाहा. देखा की ५ मिनट गुजर गए है बिस्तर को गले लगाए हुए और आँखें बंद होना नहीं चाहती थी. चूँकि मोबाइल को हाथ में ले ही लिया है तो क्यों न एक बार फेसबुक और इंस्टाग्राम में अधिसूचना पढ़ लू, शायद किसी ने याद किय हो, सोच कर मोबाइल डेटा चालू किया और इससे एक एड्रेनालाईन रिलीज़ होने वाला एहसास हुआ. थोड़ा अलग दौर है, अब जब नींद नहीं आती तो मैं ख्यालों में नहीं डूबता, अब मोबाइल में गोतें लगाता हूँ. मेरा मानना है, ये कई सारे लोग करते है. इसलिए मेरा करना भी उचित ही होगा.

हां तो अधिसूचना के नाम पर तो कुछ नहीं था. इसमें कोई अफ़सोस की बात नहीं, क्युकी वो तो एक बहाना था. हालांकि नींद अभी भी नहीं आ रही थी तो सोचा कुछ और प्रोडक्टिव काम ही किया जाए. इसलिए फेसबुक में स्क्रॉल डाउन किया और विभिन्न पेजों के पोस्ट्स नज़र आने लगे. कुछ पर्यावरण में चर्चा हो रही थी. किन्ही पेजों में कुत्तों को सेहला कर उनकी प्रतिक्रिया वीडिओग्राफ कर रहे थे. बड़े मासूम होते है ये. वीडियो वाले कुत्ते और गली के कुत्तो में वही अंतर है जो अमीर और गरीब आदमियों के बीच में होता है. कुछ लोग मोदी जी को गाली दे रहे थे और कुछ दुखी थे की अच्छे दिन अभी तक नहीं आये और उन्हें बेवक़ूफ़ बनाया गया है. एक रोचक खबर मार्किट में आयी थी, अब अलाहाबाद को प्रयागराज के नाम से जाना जायेगा. सोच कर काफी विषाद हुआ. इसलिए की अलाहाबाद के रास्ते कई बार मैं असम पढ़ने जाता था, तो कुछ लगाओ सा था इस नाम से. खैर हमारा तो कुछ बस चलता नहीं. यही सोच कर के, शायद नाम बदलने से कुछ विकास होगा और खीजकर फेसबुक बंद कर दिया. क्या नौटंकीनुमा काम है.

लगभाग साढ़े चार हो गए थे. कोयल इत्यादि ने ध्वनि भी देना प्रारम्भ कर दिया था. इसी से मन कुछ हल्का हुआ. मन की भनक को किनारे खिसकाते हुए, मोबाइल को प्रणाम करने के बाद, अपने बिस्तर के बाजू वाली खिड़की से नज़र आने वाले दृश्य का आहार किया. अब थोड़ा ठीक लग रहा था. थोड़ी देर में नींद आ गयी। 

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