रावण से सहानुभूति



सोचता हूँ की रावण का पाप कितना बड़ा होगा की उसकी सजा अब भी ख़तम नहीं होती. हर साल पूरे भारत में और विश्व के कई देशो में हिन्दू धर्म के लोग दशहरा के दिन हज़ारो रावणो का वध करवाते है. हमें नहीं मालूम की रावण कैसा दिखता होगा. मैंने उसकी प्रतिमा और पुतले भयावह ही देखे है. उसकी बड़ी बड़ी मूछे है, उसकी आँखों में ज्वालामुखी फटता है, उसके दस सर है.. ऐसा कुछ. 

मुझे कुछ सहानुभूति होती है रावण से. बच्चे से लेकर बूढ़े तक सब लोग उसके जलते हुए पुतले को देख देख खुश और अचंभित होते है. रावण गर कही से देखता होगा तो क्या सोचता होगा. क्या उसका दिल पसीज जाता होगा? क्या उसे ग्लानि मारे डालती होगी? हर दशहरा गुज़र जाने के बाद उसके लिए दोबारा ये दिन आना भी कितना दर्द से होगा. या की ऐसा हो की उसे इतनी नफरत पसंद हो. रावण तो रावण ठहरा?

हमें सबको मालूम है की रावण ने घोर पाप किया था. लेकिन उसके पश्चाताप को अब ख़त्म कर देते है ना. उसे अपने नाम से मुक्ति मिल जाए काश. हाँ, कर्म ऐसा किया है की भुलाया ना जा सके. उसे तो श्री राम और उनके लोगों ने कई बार चेतावनी भी दी होगी. क्या उसे इसका एहसास हुआ होगा की वो चिरजीव वर्षो तक यूँ बदनाम हो जायेगा? शायद मालूम होता. कहते है उसके घमंड ने उसे ये नहीं देखने दिया.

ऐसे तो हम आज के दिन सजते है, पूरे दिन कुछ ना कुछ शुभकार्य करते है. पूजा होती है, मीठे पकवान बनाये जाते है... रामायण एक पौराणिक कथा है. किसी आस्थावान हिन्दू का मत लेंगे तो वो पूरे विश्वास से कहेगा की हां ये वास्तविक घटना पर आधारित है. दिवाली का त्यौहार 2500 सालो से भी अधिक से मनाया जाता आया है. हिन्दू धर्म को सनातन बताया जाता है. इसकी कुछ शुरुआत दिखाई नहीं पडती. ये भी कहते है की ये तो धर्म ही नहीं है और एक जीने की विधि है. 

धर्म और समाज आपस में एक गहरा सम्बन्ध रखते है. किसी क्षेत्र में वहा पर प्रचलित आस्था और मान्यता वहा की नैतिकता का बयान करती है. एक पहलु में राम और रावण की कहानी हिन्दू समाज की रचयता भी है. हमें कैसा आचरण करना है, किस विधि में जीवन यापन करना है, क्या गलत है और क्या सही है इसकी प्रेरणा हमें रामायण आदि कथाओं से मिलती है. 

इस परपेक्ष में राम और रावण हमारे अंदर के अनेक पहलु है. राम की आस्था स्वयं के आदर्श को स्वीकारना है. रावण की शैली खुद हमारे अंदर निहित अकर्मो के वाक्या है. अगर रावण एक कथा मात्र का पात्र है तो हाँ फिर ये सहानुभूती व्यर्थ है. हर पल हमारे अंदर और हमारे इर्द गिर्द कई रावण-आचरण कार्य घटित होते ही है.. रावण के जलते पुतले को देख हर व्यक्ति अपने अंदर के रावण को मारने पर आता हो शायद. शायद उसे अंदर ही अंदर ये महसूस होता हो की उसके कुछ कर्म ग़लत थे... 

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