सिविल अस्पताल

जी आज मैहर नगर के सिविल अस्पताल के दर्शन हुए. दृश्य उपद्रवी थे. सिविल अस्पताल सरकार द्वारा जनता के पैसों से कार्यरत हैं. यहाँ प्राइवेट अस्पताल के मुकाबले कम मूल्य में जनता का इलाज संभव हैं. ऐसा भेद इसलिए की भारत समाजवाद का पक्ष करता हैं. भारत के संविधान में समाजवाद का दिशा निर्देश हैं. इससे ये होगा की भारत का एक जो बड़ा हिस्सा निचले स्तर में हैं और गरीबी की चपेट से अपने आप को निकाल नहीं पा रहा हैं, उसे कुछ राहत मिलेगी. इसीके चलते हमारे यहाँ कई सारी नीतियाँ और स्कीम ऐसी होती हैं जो की समाज के पिछड़े हिस्से के लोगों को या तो कम दाम में या फिर मुफ्त में सुविधाएं मुहैया कराती हैं. मनरेगा जैसी स्कीम से लोगों को रोज़गार का साधन भी उपलब्ध हैं. इसके अतिरिक्त कर्जा माफ़ी की प्रतिक्रियाये भी सम्मलित हैं जो की आज वोट बैंक राजनीती का शिकार हैं. 

एक व्यक्ति जिसने कभी सिविल अस्पताल में कदम नहीं रखा हैं, वो अगर इसके ढाचे की कल्पना करें तो मानवीय दृष्टिकोण से उसे क्या मिलना चाहिए? जाहिर हैं की स्वच्छता का एक ख़ास किरदार होगा, बाथरूम से लेकर मरीज के साथ आये लोगों के उठने बैठने की व्यवस्था होनी चाहिए, जो मरीज आता हैं उसे किसी प्रकार की तकलीफ ना हो और उसके साथ उचित व्यवहार हो इसका मापदंड होना चाहिए, कोई कंसलटेंट हमेशा मौजूद होना चाहिए, सिक्योरिटी गार्ड होना चाहिए, वार्ड में जहाँ मरीज को भरती किया जाता हैं वहाँ पर गद्दा, पंखा, पलंग आदि की व्यवस्था उपयुक्त रूप से होनी चाहिए. काश की काल्पनिकता ने सच्चाई तक पचास प्रतिशत का ही फासला तय किया होता. उपयुक्त वातावरण ना केवल मरीज, बल्कि डॉक्टर और स्टाफ के लिए भी लाफदायक हैं.

किसी शहर या देश की प्रगति की राह मापनी हो तो शायद वहाँ के शिक्षा प्रणाली और स्वास्थ्य व्यवस्था को परखना चाहिए. ये देखना चाहिए की वहाँ पर किस हद तक ये व्यवस्थाये 'बराबर' रूप से उत्तरित हैं. ये देखना चाहिए की जनसंख्या का कितना प्रतिशत हिस्सा इन सुविधाओं से संतुष्ट हैं और किस हद तक वहाँ के दिशानिर्णायको को इस बात की चिंता हैं... 

भारत आज एक अग्नि परीक्षा से गुज़र रहा हैं. कोरोना वायरस के तेज़ी से फैलाओ के चलते देश की अर्थव्यवस्था तितर बितर हुई हैं. ये पाया गया हैं की लोगों में एक गेहेन जागरूकता हैं और सभी को अपनी और अपने प्रियजनों की जान प्यारी हैं. वे नियमों का पालन भी कर रहे हैं, सिवाय इसके की अपने अनुसार. इसका श्रेय शिक्षा प्रणाली को और सामाजिक आर्थिक ऊंच नींच को जाता हैं. डिजिटल इंडिया ने भले ही तेज़ी पकड़ी हो लेकिन इसमें भी पुजोर असमानता हैं.

मतलब ये हैं की चीजें एक दूसरे से जुडी हुई हैं. हम आर्थिक सुधार, सामाजिक सुधार के बिना नहीं कर सकते. हम सामाजिक सुधार राजनितिक सुधार के बिना नहीं कर सकते. हम राजनितिक सुधार सामाजिक सुधार के बिना नहीं कर सकते. 1937 में जब कांग्रेस ने सरकार बनाई थी तो गाँधी जी ने नेताओं को निर्देश दिया था की वे देखे की पुलिस और आर्मी का उपयोग किये बिना शासन करने की ज्यादा से ज्यादा कोशिश करें. जब आज हर बात के लिए डंडे चलाने की और कानून पारित करने की जरूरत पड़ी हैं तो गाँधी की ये सलाह गौर करने लायक हैं. 

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