जल समस्या

लगभग आधे भारत से जल समस्याओ की खबरें आ रही है. बेरोक जल के उपयोग किये जाने के कारण, थर थर बहती नदिया सूखने की कगार पे है. कई नदियों पे इतना अत्याचार हुआ की उनका अस्तित्व होने का कोई लाभ नही. जैसे की बंगलौर में बहने वाली एक नदी कभी कभी आग पकड़ लेती है. कारखानों से निकला ख़तरनाक पदार्थ धड़ल्ले से नदिओं में जाने दिया जा रहा है. साल दर साल नदियों का महत्त्व कम हो गया. जल प्रदुषण आम बात हो गयी और सर्प के भाती टैंकर्स हमारे मोहल्ले में नाचने लगे है. जहा कुए थे उनका पानी बचा नही.
ये एक मानव निर्मित समस्या है और इसे कत्लेआम का दर्जा दिया जाना चाहिए. मुल्ज़िम है पूरी क़ौम. हर वे व्यक्ति जो की नदी प्रांगण से मुँह फेर के गुज़रता गया. हम सब मुल्ज़िम है और जल्द ही प्रकृति इसकी सजा सुनाएगी. ज़मीन के नीचे जो जल श्रोत है वे तेजी से ख़त्म होने लगे है. देश की एक तिहाई धरती आज मरुस्थल बंजर है. किसान की समस्या एक कड़वा सच है.

ये बात उतनी ही गंभीर है जितना की देश को आतंकवाद से खतरा. फर्क ये होगा की अब लोग प्रकृतिक आपदा से मरेंगे और नही मरेंगे तो एक आभाव जिंदगी जियेंगे. और सबसे ज्यादा अभागी है आने वाली पीढ़ी जिसे स्वक्छ जल एक सपने के भाती नज़र आता है.

चेन्नई शहर में जो इस बार पानी को लेकर के हाहाकार मचा है वो गवाह है आने वाले कल का. कई कई संस्थानों ने पानी के ऊपर रिसर्च किया और सर्वे करके पाया है की भारत की आने वाली दुर्दशा क्या होगी अगर सही समय ठोस कदम न उठाये गए. बड़े शहर जैसे की दिल्ली, बैंगलोर में पहले से ही दूरदराज से पानी पाइप से आता है. भारत में ही पानी को लेकर के आपस में राज्य झगड़ने लगे है. 

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