रोटी



मैं रोटी की चादर ओढ़ छैया 
जाऊंगा परदेश पार करके दरिया 
वहाँ मेरे वतन की महक नहीं होगी 
साग, चूल्हा और पराठे भी नहीं 
मैं वापस आके इन्हे दोहराऊंगा 
मैं अभी परदेश को जाऊंगा 

सुन माँ थोड़ी मिट्टी डब्बे में भर देना 
तेरे आँखों का काजल, हलकी हसीं 
मंदिर की थोड़ी राख़ रख देना 
छत की खप्पर, 
कुइया की शीतलता थोड़ी
थोड़ी मीठी बेसन की बर्फी 
और घर की रंगोली 
इन्हे मैं परदेश में सजाऊंगा मैया 
मैं अभी परदेश को जाऊंगा मैया 

एक टोकनी आशीर्वाद की 
थोड़े आँगन की ताप भी 
बारिश की कुछ बूँदे थोड़ी 
दुआओं की एक कटोरी 
नीला आसमा भी थोड़ा रखना 
सांझ और सुबह भी 
जुगनूओ की रात भी 
और रखना 
अब्बा का गमछे से लिपटा पसीना
मैं देखूंगा की लौटू चौड़ा करके सीना.. 

मैं अभी चलता हूँ 
जोश से उछलता हूँ 
मेरी यादें ले पकड़ तेरी मुट्ठी में 
इसमें कम्पन हैं, अंगड़ाई हैं 
शरारत हैं, रुसवाई हैं 
ठिठोली हैं, आँखों की चमक हैं
ढेर सारा प्यार हैं 
ज़ोरों से पकड़ना
इन्हे कैद रखना
मुट्ठी बंद रखना.. 



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