श्रद्धांजलि

मैं अपनी देहलीज से 
साखी तुम्हें बुलाऊ या 
खुद कागज़ बन जाऊ 
तुम देश के हो, देशी हो 
सरहद से हो, हितैषी हो 
तुम वर्दी वाले, शूरवीर
पत्थर जिगरा, आत्मधीर
हैं रक्त तुम्हारा रक्त भी 
जब बहे तो वो हैं स्वर्ण भी
तुम मरे नहीं जीवित रहोगे 
साँसे बनके इस मिट्टी से बहोगे
कतरा कतरा हर लम्हों में
इबादत में, ख़ामोशी में
मैं नमन करू या साँसे भरु 
ये आहआह और आहताप
अब सेहता नहीं, अब सेहता नहीं..
'तुम अमर हो, तुम अमर हो..'
गूंजे अब सब जगह यही.. 

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