एक अरसे से सीसी..

"एक अरसे से सीसी करती
कुछ कहती, कुछ महकती
रात सी होती, दिन में पिघलती
कभी रोती, कभी खोती"

क्या? कुछ कहा तुमने?

"तुम गले से गले लगाकर
कंधे को सिरहाना बनाकर
बाजु से बाजु टकराकर
मुझे आजमाकर
तराजू से टँगाकर
बोलो क्या लाये?
मौत?"

क्या बड़बड़ाये जा रहे हो? 

"एक बात बताओ 'बिसमिल',
कल से नब्बे दिन तक ख़ुश रह सकते हो?
हां, पूरे नब्बे दिन
हर पल, बिना सोचें, बिना रुके
नींद में भी, गुस्से में भी, बस ख़ुश.."

बिलकुल, क्यू नहीं
इसमें कौन बड़ी बात हैं 
वो तो आज़ाद कौवा भी करले

"एक आज़ादी की तलाश में मैं
दर दर भटकता हूँ
नहीं मिलती मुझे वो कही
ना नींदों में
ना कोनो में
ना हवाओ में
ना सजाओ में, ना दुआओ में... और.."

झूठ बोलते हो तुम!
तुम धोखेबाज हो, मक्कार हो..
हो ना?
तुम्हें आज़ादी नहीं मिली?
क्या बात करते हो!?
क्या तुम आज़ाद नहीं?
हेह

"मैं तो धूप भी उधार की लेता हूँ
दानापानी भी, छाव भी
एहसास भी, ख़ामोशी भी, छुअन भी.."
तुम.. तुम समझते क्यू नहीं?

"तुम ना.. तुम पागल हो गए हो",
बिसमिल झटक के बोला


Comments

Popular posts from this blog

Our visit to Shanti Bhavan - Nagpur

Why am I a Vegetarian?

Ride and the Kalsubai Trek