अंकल केयरटेकर
खेतन जब सोने ही वाला था की उसके फ़ोन की घंटी बज गयी. रात के एक बजे, उसने अपने स्क्रीन को देखा तो केयरटेकर का नाम दिख पड़ा. उसे लगा की दिन भर घर में ना रहने से उससे किराया लेने आयी होगी. लेकिन रात एक बजे? उसने फ़ोन उठाया तो बबली ने बोला, 'भैया एक मिनट दरवाजा खोलो'. खेतन पलंग से उठा, बत्ती जलाई और कुर्सी में बेहोस टीशर्ट को उठाकर जल्दी में उल्टा ही पेहेन लिया. आँखें ठीक से नही खुली थी अभी.
'नही भैया पैसे नही, वो मेरे पापा की तबियत खराब हो रही है, थोड़ा ऊपर आना', बबली ने बोला. खेतन दूसरे माले में रहता था. उसने पिछले पांच महीने बिता दिए रहते हुए, लेकिन अपनी माले से ऊपर एक सीढ़ी भी उसने नही चढ़ी थी. दोनों जल्दी में ऊपर गए.
मौसम बावला हुआ पड़ा था. अख़बार में पढ़ा था की पश्चिम की हवाएं बौखलाइ हुई है और बादलो को एक जुट किये शहर को आने वाली गर्मी से बचा रही है.
दो माले की सीढ़ी लाँघने के बाद छत आयी. छत हलकी गीली थी और उसने जैसे ही पैर बाहर रखा तो महसूस किया की ठण्ड हवा नाच रही है. लेकिन बबली रहती कहा है? थोड़ा आगे गया तो एक छोटा सा कमरा था, हरा रंग पुता हुआ था. कमरे में एक फ्रिज था जिसका कम्प्रेसर 'भिन्न' वाली आवाज़ निकाल रहा था. नीचे दरवाजे के बगल में चूल्हा रखा हुआ था और एक बर्तन में दाल और आधी डूबी रोटी थी. पूँजीवादियों की तरह पलंग ने कमरे का ज्यादातर हिस्सा हड़प रखा था और उसके ऊपर बैठे हुए थे बबली के पापा, मुँह लटकाये, हताश. उन्होंने वही पुराना कुरता पहना था जिसकी ऊपर की बटन खुली हुई थी.
'क्या हुआ अंकल?', खेतन ने पूछा. अंकल ने मुंडी उठायी, आँखें टिमटिमायी और बबली को मिमियाते हुए कहा, 'मैं मरने वाला हूँ बबली'. खेतन के लिए ये नयी समस्या थी. सुबह जल्दी जाना था तो उसने अंकल से पूछा, 'क्या हो गया अंकल, कैसा लगा रहा है, बुखार है क्या'. अंकल कुछ बयान नही किये बस हाथ को गोलाकार उठाया और सर पकड़ लिया. फिर मुँह बनाया और पेट पकड़ लिया. बताना चाहते थे की बेचैनी पकडे है.
'बबली आंटी कब से हो रहा है ये, बेचैनी लग रही है इन्हे?'
'शाम में जब छोड़ के गयी थी तो ठीक थे. अभी आठ एक बजे से बोल रहे है', बबली बोली.
'ये देखिये भैया रिपोर्ट'... 'डॉक्टर ने इंजेक्शन भी लगाया था और दवा लिख के दि और बोला की कल खा लेना', बबली ने लप से बोला. रिपोर्ट को देखकर खेतन को इंजीनियरिंग याद आ गयी. ई सी जी की रिपोर्ट थी, बगल में लिखा था और मस्तिष्क की कुछ वेव लाइन बनी हुई थी जो उसके बिलकुल पल्ले नही पड़ी. उसने अंकल का हाथ और सर भापा की बुखार तो नही है. नही था. अब क्या किया जाए? इससे ज्यादा डॉक्टरी तो उसे आती नही थी!
उसने अपनी बहन को फ़ोन घुमाया जो की डॉक्टर है. फिर रिपोर्ट में से देखा की बी पी बराबर है. बहना से बात करके ये मालूम हुआ की शायद गैस हो गयी है इन्हे. अंकल जी ने खाना समय से नही खाया था और निरंतर डकार ठेल रहे थे. 'भूख लग रही है क्या?', खेतन ने पूछा. अंकल ने एकाएक फ़रमाया, 'अरे नमक तेज़ है इसमें' और फूट फूट के रोने लगे.
'एक काम करो थोड़ा टहल लो इधर, अच्छा लगेगा'...'और ये बिस्कुट खा लो'. लेकिन अंकल जी को लग रहा था की उनके दूर के रिस्तेदार ने जब उन्हें मुफत की सेवाएं दि थी दस दिन पहले, बस उसी में कुछ न कुछ मिलाया होगा! अंकल जी बाहर गए, थोड़ा टहले. उनका मुँह धुलवाया, कुल्ला कर लिया और अंदर पलंग में वापस आ गए.
ये सब के बीच खेतन ने अंकल जी से आग्रह किया की कृपया बिस्तर में पड़ जाईये और निद्रा की बिनती कीजिये. 'शरीर में खून नही बचा, ये देखो' अंकल जी फुसफुसाए और हाथ दिखाया. दरअसल डॉक्टर ने खून जांच के लिए थोड़ा सा निकला था! पूरे एक डेढ़ घंटे के बाद, जब उन्हें जबरन बिस्तर में पडाया और आँखें खोलने से मना किया तब जा के बबली के पापा ने खर्राटे मारे और रात को माफ़ किया!
खेतन जब नीचे आया तो कई सवालों के बीच था और कुछ अजब सी बेचैनी में पड़ा था. उसे अपनी इस इमारत में गरीबी पहली बार दिखी थी. सभी कोई अपने दिमाग़ में अपनी अजीब समस्याएं लिए बैठे है. वाह जी जिंदगी... तेरे अनेकों रंग...
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