धूधुल होता मैहर


आखिर क्या बात है? या तो मैहर वासी एक गहरी निद्रा में डूबे हुए है जो की ये अपनी ही बनती मृत्युशैया को नकार रहे है अथवा इन्हे बारम्बार बेवक़ूफ़ बनाया जा रहा है. आखिर मैहर में धूल मिट्टी का प्रदूषण कब बंद होगा. वैसे भी ये केवल मिट्टी नहीं रही है. प्रत्येक दिन सुबह से ही ट्रक वाहनों का ताता बंध जाता है जो की मैहर के सीने को फाड़ते हुए, बीच सड़क से लगातार गुजरता रहता है. इतने वाहनों से होने वाला प्रदुषण जो की जहरीली कार्बन अन्य गैसों के विवरण को वातावरण में धूल के साथ धधोक देता है. इसे ही मैहर वासी न केवल सुबह चाय के साथ, दोपहर और रात खाने के साथ, बल्कि निरंतर हर एक सास के साथ अपने शरीर में प्रवेश कराते रहते है और मजे में रहते है. ये स्लो पॉइज़न है ज़नाब.

अब मैहर तीन तरफ से सीमेंट कारखानो से घिरा हुआ है. इनसे होने वाले प्रदूषण से जो वातावरण को हानि पहुंच रही है, उसका जवाब कौन देगा? एक दशक पहले का मैहर कुछ और था जब की भूजल के ख़त्म होने की समस्या हमे नहीं सताती थी. कुछ धूल थी तो उसको संभालने के लिए कई ज्यादा वृक्ष भी थे. आज ये हमारी आँखों के नीचे से ओझल होते जा रहा है और हम इस कगार पे है की गर्मी के मौसम से पहले ही लोगो को बोरवेल में पानी नहीं मिलता. ठण्ड कब आके चली जाती है पता ही नहीं पड़ता. इन्द्र देव जी ने बादलों के काफिले को मैहर के रास्ते ले जाने से इंकार ही कर दिया है. हमे विकलांग बनाया जा रहा है और हम एक दुसरे के मुँह को निहारने के अलावा और कुछ नहीं कर पा रहे है. हां, हम सभी लोग दिल्ली में होने वाली प्रदुषण की समस्याओं का मुआयना यूँ ही बड़ी तकल्लुफ से कर रहे है.

यदि ये कारखाने, यहाँ की धरती में पैदा होने वाला लाइमस्टोन आदि खनिज पदार्थ निकाल कर कमाई कर रहे है, तो ये इनकी ही जिम्मेदारी बनती है की पर्यावरण में होने वाली विकृतियों का ख्याल भी रखा जाए. यदि ये ऐसा नहीं करते है तो ये बेईमानी है. शहर में चलना दूभर हो गया है. कोई भी आपके ऊपर से गाडी चला के जा सकता है. इस्पे प्रशाषन शांत क्यों है? क्या ट्रैफिक क़ानून बड़े शहरों के लिए ही बनाये गए है? वही धूल मिट्टी का जबरदस्त क़हर. रीवा रोड के मार्ग से गुजरके गाड़ी चलाना खतरे से खाली नहीं है. ये तो एक एडवेंचर के सामान है. यहाँ टॉलीवूड की फिल्म ही बना ले आप. अरे इतनी धूल के बीचो बीच निकलना कोई आप बात थोड़े ही है. वही दूसरी तरफ हरनामपुर के मार्ग से सरलानगर की ओर बढ़ना अत्यंत कठिन हो गया है. ये धूल का तूफ़ान जाने कहा से आ टपका है. वही तीसरी ओर सतना और कटनी रोड. हमे चारो ओर से घेराबंदी करके घुट कर मरने के लिए छोड़ दिया गया है और अभी तक हमने कुम्भकरण की नींद त्यागी नहीं है.

चुनाव सर पे है. फिर शायद कई वादे होंगे. बड़ी बड़ी हस्ती आएँगी. रैली निकाली जाएंगी. नौटंकी होगी. नाच होगा. गाने बजेंगे. नोट बटेंगे. ढोल बजेंगे. रंग उड़ेगा. इसके साथ साथ दुनिया एक कदम आगे बढ़ेगी और मैहर वही का वही गोबर के सामान गोबर ही रहेगा और यहाँ से पढ़े लिखे युवा पलायन करने को मजबूर होंगे. शर्म की बात है. यदि आपको ये सब मंजूर है, तो ठीक बात है, शौक से मरिये...

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