बादलों के साये थे

बादलों के साये थे
धार थी, बूँद-बूँद मिल कर
बहती हुई
घर के धरवाजे की चौखट के तले
लाल मिट्टी का निखार
छप छप करते लोग...

अपनी छोटी बहन के साथ
वही
सहमे से बैठे हुए थे
पानी, और वो भी आसमान से गिर रहा?
वाह
और फिर ये शांत रहने वाले बादलों का
तेजी से गर्जन करना
छोटी आँखों से धरती डूबने का भय था
वो रेत के ढेर में जो घर बनाया था
वह भी तो भर गया था

वर्षा जो काम हुई
अंदर से भाग के कागज़ ले आया
बना दी कागज़ की छोटी सी कश्ती
और छोड़ दी धार में

दादाजी बैठे थे खिड़की से सटकर
गुनगुना रहे थे कुछ
कई दिन हो गए उनसे मिले हुए...

खेलते खेलते
दो बार कपडे भिगा डाले
माँ ने तो पीट ही दिया था दूसरी बार
क्या था, बच के भाग दिए

भाईसाहब,
अब तो वाशिंग मशीन का ज़माना है

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