होली हैं!

ट्रेन टेशन पर लगी हैं. ट्रेन की ज़्यादा सीटें खाली हैं. प्लेटफार्म भी कितना खाली हैं. लोगों का उत्साह गले में बँधा हुआ हैं. आज गर्मी लग रही हैं. दिल्ली में मार्च के अंत तक आते आते सूरज कर्क रेखा पार कर उत्तर में चढ़ाई करने लगता हैं. तापमान में बढ़ोतरी होने लगती हैं. काली टीशर्ट नहीं पहनना चाहिए था. कल होली का दिन हैं. रंगों ग़ुलाल का दिन हैं. आज होलिका देहेन होगा.

होलिका एक औरत थी जो स्वेक्षा से अपने भतीजे प्रह्लाद को आग में दहा लेने को बैठी थी. 'हरी' ने प्रह्लाद को बचा लिया. होलिका तड़पते चिल्लाते भुन के राख़ हो गयी. अगले दिन लोगों ने एक दूसरे पर रंग लगाया, नाच गाना किया, भांग चढ़ाई. अब हर साल होलिका नामक नारी को समाज के लोग घेर के 'जला' देते हैं. उनका दावा हैं की इससे झूठ, फरेब, कालाबाज़ारी, ऊंच नींच अथवा अनेक बुराइयों का दहन हो जायेगा. नहीं होगा तो अगले साल फिर ट्राई करेंगे. कभी न कभी तो होबै करेगा!

मैं टेशन जल्दी पहुंच गया. आज रविवार का दिन हैं. कल रंग वाले दिन पब्लिक हॉलिडे रहेगा. दिल्ली की चौड़ी सड़कें सूनसान हो जाएगी. अब कोरोना दोबारा पैर पसार रहा है. गोरमिंट ने कहा हैं की ज़्यादा उत्तेजित ना होवे, भीड़ का जमावड़ा ना करें, कायदा कानून का पालन करें और खासकर के मास्क लगाए और एक हाथ की दूरी से एक दूसरे को रंग लगाए.

आह! डब्बे का पंखा चालू कर दिया हैं. टीशर्ट पसीने से भीग चुकी थी. यात्रियों की संख्या में इजाफा हुआ हैं. लोगों ने अपने अपने हिसाब से और आराम को मद्देनज़र रखते हुए मास्क लगाया हैं. कोई लगाया हैं. कोई नहीं लगाया हैं. किसीने आधे मुँह को ढका हैं. बगल के कम्पार्टमिंट में कोई भोजपुरी गीत सुन रहा हैं. एक जगह से किरकिट मैच की कमेंटरी की आवाज़ आ रही हैं. दो लोगों के बीच सीट के सिलसिले में आफाजाफी हो रही हैं. ज़्यादातर लोग गर्दन नीचे किये हुए अपने मोबाइल में कुछ कर रहे हैं.

मेरे डब्बे में दो बच्चों का प्रवेश हो गया हैं. लड़के ने आते ही उछल कूद चालू कर दि हैं. वे जिद करता हैं की उसे ऊपर वाली सीट में जाना हैं. उसके मुँह पे एक गाना हैं, "ठंडा ठंडा पानी! इतनी मोटी नानी!..". वो अब कहता हैं की उसे खिड़की के पास बैठना हैं. उसके डैडी जी कहते हैं की बेटा वहाँ अंकल बैठे हैं! जी अंकल मुझे कहा! बताइये! ओ हलो!

ट्रेन चल चुकी हैं. प्लेटफाम की छाव छोड़ते ही खिड़की में से तेज धूप का आगमन होता हैं. चलती ट्रेन ने अलसाये हुए नज़ारों का पुल बाँध दिया हैं. कई जगहों पर लकड़ी के ढेर में होलिका को जला देने के लिए 'सजाया' हैं. होलिका के पुतले ने पीले लाल रंग की साडी पहनी हैं, सर पर मुकुट बँधा हैं. मोहल्लो में ये काम बच्चों को सौंपा जाता हैं.

छोटी बच्ची औधे मुँह किये ऊपर वाली सीट पे सोने की कगार पर हैं. उसका हाथ सीट से लटक रहा हैं. आँखें खिड़की पे गड़ी हैं. उसने साथ में एक पिचकारी की बन्दूक अपने पास रखी हैं. बन्दूक लाल हरे रंग की हैं. दिल्ली छोड़ अब ट्रेन खुले मैदानों से बेह रही हैं. 

थोड़ी देर में एक बहन जी ताली बजाते हुए आ जाती हैं. वो कहती हैं की जितना देना हो देदे बापू, चार सौ, सौ, पांच सौ! सामने बैठा आदमी दबी आवाज़ में कहता हैं, "दस!".. "चल दे..!". आदमी ने पचास का नोट थमाया और खुल्ले पैसे वापस मांगे. "ये ले, दस बीस तीस चालीस!"

...वो क्या कहते हैं, "हैप्पी होली!"


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