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Showing posts from May, 2020

मैं क्या ना बनू?

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सौरव की रूह अपने शव के बगल में खड़ी हुई थी. वो थक हार कर हताश बस अपने निर्जीव शरीर को निहार रही थी. उसने बहुत प्रयास किया की वो किसी प्रकार से शरीर पे वापस प्रवेश कर ले. उसने शव पे बैठना चाहा, उसे थप्पड़ मार के जगाना चाहा, वे चिल्लाता रहा. अब आंसू भी नहीं निकलते. शव ने साँसे दोबारा नहीं ली. शव मिट्टी सा ढेर कमरे की फर्श पे बिखरा पड़ा था.  सौरव अभी तीस का भी नहीं हुआ था. उसमे गजब की ऊर्जा थी कुछ कर दिखाने के लिए. वो अपने आप में ही खमा रहता था इस इंतजार में की उसके दिन जल्दी लगेंगे और वो कुछ बन दिखायेगा. इससे पहले की वो कुछ बनता, रात की काली चादर उसपे चढ़ गयी और सुबह उसके बिना हो गयी. वो शव के बगल में बैठे अपने बजते हुए फ़ोन को निहार रहा था और आँखें फाड़ता हुआ बस तड़प ही रहा था. उसके फ़ोन में कई सारे सोशल मीडिया के मेसेज के नोटिफिकेशन दिखाई पड़ रहे थे. उसने कल ही अपनी नई प्रोफाइल पिक्चर अपलोड की थी. रात को सोने से पहले वो ये देख के सोया था की किसका लाइक आया हैं और किसने क्या कमेंट किया हैं. वो ख़ुश ही तो था...  फ़ोन बज कर बंद हो गया और दो तीन घंटे के बाद फिर बजने लगा. आज सौरव का ...

मनोज मुन्तज़िर

मनोज मुन्तज़िर एक निहायती कर्मठ और जज़्बेदार आदमी था. वो मिट्टी की खुशबू, गाँव की सुगंध, खून-पसीना, बूते भर अनाज के दाने, गमछे की पराकाष्ठा को भलीभांति पहचानता था. उसके पास वो सब कुछ था जो एक व्यावसायिक व्यक्ति के गुणों की श्रेणी में होना चाहिए. वो आत्मीय था, जुगाडू था, सीखने को जुझारू, अग्रसर, ईमानदार जैसे की एक फलों से बोझिल झुक जाने पेड़ के समान.  अपने मुकामो को हासिल करने के लिए, समाज से इज्जत बटोरने के लिए वो एक बहुत ही निर्मम कार्य से अपने करियर की कमान दौड़ाना शुरू किया. वो एक रिपेयरिंग तकनीशियन से अपना काम शुरू किया. उसके बोलने की शैली ने, कामुक तीख़ेपन ने उसे सुपरवाइजर की श्रेणी दिलाई, उसके बाद वो सीधा एक कॉर्पोरेट ऑफिस में काम को हुआ. इस एक लाइन का फासला उसने लगन और मेहनत से तय किया. कॉर्पोरेट में वो सब कुछ करता था. उसे वहाँ का सारा काम आने लगा जो की रेगुलर कर्मचारियों को आता हो. उसके काम में भूल चूक भले ही आये, लेकिन अग्रसरता की कोई कमी नहीं होती. फिर भी उसे महसूस होता था की उसके अस्तित्व में किसी वाज़िब इंस्टिट्यूट की स्याही नहीं थपी हैं. उसकी डिग्री में औरों की अपेक्षा कोई ब...

Knee, aah

Stuck off country in a remote location, he broke his knee. Aah, it was painful. He was alone, helpless. The night was before him over a cloudy roaring sky. The window of the rented single room was fluttering in the wind and he could not move to his wishes, not an inch. 'Oh God, why me?'  He had no idea what to do. He thought that it is minor and will be okay in a while. He tried to sleep and wanted to wake up as if he just over came a bad dream. He did sleep. He opened his eyes to thunders of the cloud, fluttering window and excruciating pain. He could not believe himself. He felt foolish. The injury was so avoidable. He took great care of his physic. He was worried. He was having negative ideas, 'what if..?' The pain reverberated with passing hours and he could not do but stare at the ceilings carefully unmoving his knee. The weather was cold. He had tears falling down from his eyes. He did not shout. He knew that the walls are deaf. He felt pain after a long time. He ...

पंजाबी

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दुकान का मालिक उसको 'पंजाबी' कहके सम्बोधित करता था. 'पंजाबी रोटी बेल.., पंजाबी आज क्या बना रहा हैं, पंजाबी परांठे बना जल्दी..' पंजाबी के हाथों में जादू था. उसको किसी डिग्री या कोर्स की जरूरत नहीं पड़ी थी खाना बनाने की कला को सीखने के लिए. वो अपने हिसाब से बनाता था. ग्राहक अपनी ऊँगली भी चाट जाते थे. वो इस दुकान से उस दुकान को जो हो, भीड़ भी वही होती थी..  पंजाबी एक माइग्रेंट वर्कर हैं. वो भारत के एक पिछड़े राज्य का रहने वाला हैं. उसने लगभग दस राज्यों में काम किया हैं, तब से जब वो दस साल का था. उसे इन सब राज्यों के बारे में कुछ कुछ मालूम हैं. वो जानता हैं की वहाँ के लोग क्या बोलते हैं, क्या खाना पसंद करते हैं, वहाँ आसपास घूमने को क्या हैं.. उसे भारत का नक्सा ना ही देखा हो, लेकिन कौन सा शहर किसके बाद और पहले उसके रास्ते में पड़ता हैं उसे मालूम हैं..  पंजाबी की कद काठी पाँच-पाँच होगी और वजन कुछ पचास किलोग्राम. उसकी रंग-उडी कमीज हमेशा फटी हुई मिलती हैं, कभी आस्तीन से, कभी कालर की तरफ... वो एक-कमरे वाली दुकान के ऊपर की छत पर सोता हैं. उसके दो तीन जोड़ी बिना इस्त्री किये कपड़े एक पन...

रोटी

मैं रोटी की चादर ओढ़ छैया  जाऊंगा परदेश पार करके दरिया  वहाँ मेरे वतन की महक नहीं होगी  साग, चूल्हा और पराठे भी नहीं  मैं वापस आके इन्हे दोहराऊंगा  मैं अभी परदेश को जाऊंगा  सुन माँ थोड़ी मिट्टी डब्बे में भर देना  तेरे आँखों का काजल, हलकी हसीं  मंदिर की थोड़ी राख़ रख देना  छत की खप्पर,  कुइया की शीतलता थोड़ी थोड़ी मीठी बेसन की बर्फी  और घर की रंगोली  इन्हे मैं परदेश में सजाऊंगा मैया  मैं अभी परदेश को जाऊंगा मैया  एक टोकनी आशीर्वाद की  थोड़े आँगन की ताप भी  बारिश की कुछ बूँदे थोड़ी  दुआओं की एक कटोरी  नीला आसमा भी थोड़ा रखना  सांझ और सुबह भी  जुगनूओ की रात भी  और रखना  अब्बा का गमछे से लिपटा पसीना मैं देखूंगा की लौटू चौड़ा करके सीना..  मैं अभी चलता हूँ  जोश से उछलता हूँ  मेरी यादें ले पकड़ तेरी मुट्ठी में  इसमें कम्पन हैं, अंगड़ाई हैं  शरारत हैं, रुसवाई हैं  ठिठोली हैं, आँखों की चमक हैं ढेर सारा प्यार हैं  ज़ोरों से पकड़ना इन्हे कैद रखना मुट्ठी बंद रखना.....

अफवाह

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"मम्मी यहाँ दंगे नहीं हो सकते. बिलकुल भी नहीं. कभी नहीं", इतना कहते ही कहते ईमारत के नीचे से गाड़ियों की रफ़्तार तेज़ हो गयी. सडक में से गाड़ियों का हॉर्न सुनाई देने लगा. एकाएक भर भर गाड़ियां निकलती रही. आस पास के लोगों में फुसफुसाहट शुरू हो गयी. कानो सुनी बातें लोगों के जुबान में फैलने लगी, एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे... भीड़, भगदड़, शोर सभी ने जल्दी पकड़ ली. "क्या हुआ?... कुछ हुआ क्या?... क्या?.. कहा?.. आज?.." लोगों के मोबइल फ़ोन बजने लगे. "हां मैं ठीक हूँ.. यहाँ सब ठीक हैं". सब कुछ मिनटो में बदल गया. दुकानों की शटर गिरने लगी. आधी अधूरी शाम को छोड़ लोग अपने अपने घर को रवाना होने लगे. किराने की दुकानों के आधे खुले शटर में भीड़ का जमावडा होने लगा. "जल्दी देदो भइआ... हां जल्दी देदो... आपने कुछ सुना... कौन करता हैं ये... कितनी बुरी बात हैं.. भइआ हम तो सोचते थे की ये इलाका ठीक हैं.." थोड़ी ही देर में मेले लगे इस संसारिक वातावरण में अंधकूप छा गया. सड़के खाली हो गयी. लोग अपने घरों में घुसे हुए भी आवाज़ नहीं करते थे. मिनटों में पुलिस की गाड़ियों ने मोर्चा सम्हाला. ये...

Ignore him

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Of all the world, he messaged her, "I feel lonely. Talk to me". There was no reply. She was busy. It was his mistake to let her go at the first place. No. It was society's mistake. She is of a different strata. No. It was the time that was not in his favor. No, he was confused and selfish and young straight into his career. He suppressed something that he had been plying on for a long time. He developed inside himself and left it to become a disease, like some kind of cancer. He remained unaware for a long time. He suppressed it brutally only to be haunted by it later. As it came by, as time passed, it started to burst. It started to pain. His career seemed just as normal as the life itself, uncertain. But something kept on hitting him every now and then. He never recovered from it. He could have. He never wanted to make yet another attempt and burden his already over-worked heart. He skipped through many feelings. And he remained ambitious. Time and again, ...

श्रद्धांजलि

मैं अपनी देहलीज से  साखी तुम्हें बुलाऊ या  खुद कागज़ बन जाऊ  तुम देश के हो, देशी हो  सरहद से हो, हितैषी हो  तुम वर्दी वाले, शूरवीर पत्थर जिगरा, आत्मधीर हैं रक्त तुम्हारा रक्त भी  जब बहे तो वो हैं स्वर्ण भी तुम मरे नहीं जीवित रहोगे  साँसे बनके इस मिट्टी से बहोगे कतरा कतरा हर लम्हों में इबादत में, ख़ामोशी में मैं नमन करू या साँसे भरु  ये आहआह और आहताप अब सेहता नहीं, अब सेहता नहीं.. ' तुम अमर हो, तुम अमर हो..' गूंजे अब सब जगह यही.. 

Treasure found

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Weather was cloudy. Mild bluish light covered the city. Wind was roaring. Plants and trees were dancing. Kids were noisily playing on the street. Few vehicles. It was towards the evening after a long day of autumn.  He was sitting besides the window, watching the clouds. He was silent but attentive. Yet he gave no movements except some hard punching on to the arm of the chair every now and then. He was not calm, a bit anxious. He wore a white shirt, never put it off after coming back from the office. He was tired. His shoulders were paining due to a heavy workout in the morning. He was hungry. Her long hairs were all over the bed on one side while she remained quietly lying on the bed towards the other side. She was awake. There was silence inside the room along with the fragrance of the jasmine perfume that she had put on. They had a fight. She had a teary wet face, blackened large eyes,  disheartened and clinched herself to the pillow. "Should I sing for you?", ...