मैं क्या ना बनू?
सौरव की रूह अपने शव के बगल में खड़ी हुई थी. वो थक हार कर हताश बस अपने निर्जीव शरीर को निहार रही थी. उसने बहुत प्रयास किया की वो किसी प्रकार से शरीर पे वापस प्रवेश कर ले. उसने शव पे बैठना चाहा, उसे थप्पड़ मार के जगाना चाहा, वे चिल्लाता रहा. अब आंसू भी नहीं निकलते. शव ने साँसे दोबारा नहीं ली. शव मिट्टी सा ढेर कमरे की फर्श पे बिखरा पड़ा था. सौरव अभी तीस का भी नहीं हुआ था. उसमे गजब की ऊर्जा थी कुछ कर दिखाने के लिए. वो अपने आप में ही खमा रहता था इस इंतजार में की उसके दिन जल्दी लगेंगे और वो कुछ बन दिखायेगा. इससे पहले की वो कुछ बनता, रात की काली चादर उसपे चढ़ गयी और सुबह उसके बिना हो गयी. वो शव के बगल में बैठे अपने बजते हुए फ़ोन को निहार रहा था और आँखें फाड़ता हुआ बस तड़प ही रहा था. उसके फ़ोन में कई सारे सोशल मीडिया के मेसेज के नोटिफिकेशन दिखाई पड़ रहे थे. उसने कल ही अपनी नई प्रोफाइल पिक्चर अपलोड की थी. रात को सोने से पहले वो ये देख के सोया था की किसका लाइक आया हैं और किसने क्या कमेंट किया हैं. वो ख़ुश ही तो था... फ़ोन बज कर बंद हो गया और दो तीन घंटे के बाद फिर बजने लगा. आज सौरव का ...