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Showing posts from April, 2020

एक अरसे से सीसी..

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"एक अरसे से सीसी करती कुछ कहती, कुछ महकती रात सी होती, दिन में पिघलती कभी रोती, कभी खोती" क्या? कुछ कहा तुमने? "तुम गले से गले लगाकर कंधे को सिरहाना बनाकर बाजु से बाजु टकराकर मुझे आजमाकर तराजू से टँगाकर बोलो क्या लाये? मौत?" क्या बड़बड़ाये जा रहे हो?  "एक बात बताओ 'बिसमिल', कल से नब्बे दिन तक ख़ुश रह सकते हो? हां, पूरे नब्बे दिन हर पल, बिना सोचें, बिना रुके नींद में भी, गुस्से में भी, बस ख़ुश.." बिलकुल, क्यू नहीं इसमें कौन बड़ी बात हैं  वो तो आज़ाद कौवा भी करले "एक आज़ादी की तलाश में मैं दर दर भटकता हूँ नहीं मिलती मुझे वो कही ना नींदों में ना कोनो में ना हवाओ में ना सजाओ में, ना दुआओ में... और.." झूठ बोलते हो तुम! तुम धोखेबाज हो, मक्कार हो.. हो ना? तुम्हें आज़ादी नहीं मिली? क्या बात करते हो!? क्या तुम आज़ाद नहीं? हेह "मैं तो धूप भी उधार की लेता हूँ दानापानी भी, छाव भी एहसास भी, ख़ामोशी भी, छुअन भी.." तुम.. तुम समझते क्यू नहीं? "तुम ना.. तुम पागल हो गए हो", बिसमिल झटक के बोला ...

A dead rainbow

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The rainbow was full It glimmered and shone It remained in hope It hanged and smiled And more but soon, it faded With time It perished in despair Into darkness and nothingness Into neglect and away And sorrow, and misery And disease, and pain Midway to death and life, and less  Overhanging with innocence And light, and color And magic and hope Kindness and infinity But boundaries and Systems And procedures And laws And anarchy And domination  Their privileges But not love And care And no solace But madness Days became heavy Heart grew small Soul contracted and shattered in pieces But thy ignored the agony Remained in their high castles Gliding in their own rainbows Making peace and songs Chattering with birds But doing no justice Thy quietness overkilled And the world laughed Of shamed irony

Will let you go

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Stranded to a storm Tired, amazed, mesmerized, torn I looked at the flowing river Flowing full to the shore and quiver Cutting it, taking pieces along Yet shore is quiet "I am that shore" Stood there I gazed at a pearl nearby Shining, like, someone in my memory In memory, of April And the storm Made me dizzy Yet amazed I stood helpless "I am that helplessness" The sky kept roaring bravely Yet not giving a single drop Seemed greedy, like a bad monarch Below on the tarred land, I stood Looking at his darkening anger Anger, but no rage, powerless "I am that anger" I looked at my weight, My shivering hands 'Would you not hide yourself from me?' I asked myself What, today, that you make me feel Alone and lonely, yet not empty No one, but someone "I am that no one" I closed my eyes I looked at the non-empty emptiness I kept gazing inside It was not dark I had to swim deep Finally Frequented with a smi...

बराबरी

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नीचे गली में जश्न का माहौल था. मोहल्ले के कुछ जन पिछले तीन हफ्तों से हर दिन खाना पका कर, पैक कर लेकर जाते थे. वो ये खाना शहर की कई सारी झुग्गी झोपडीयों में बाट आते थे. नीचे एक कार खड़ी हुई हैं जिसके पीछे वाले कांच में लिखा हैं, 'कर सेवा'.  महामारी के चलते समाज में तीन तख़्तों के लोगों को सही स्थान मिलना चाहिए जो की हैं स्वास्थ्य कर्मचारी, पुलिस और सफाई वाले. पीछे कुछ दिनों पहले भारतीयों ने एक दिन शाम को अपने घरों से थाली मंजिरा ठोक के 'शायद' यही ऐलान किया था. उस दिन के बाद ऐसा ही लगा था की अब कोई डॉक्टर्स पे हमला नहीं बोलेगा, सफाई कर्मचारियों से तवज्जो से पेश आएगा और उन्हें इज्जतदार नज़रो से देखेगा, बराबरी का समझेगा, गिरी नज़रो से नहीं. तीनो ही तख़्तों में पुलिस वालों ने अपने डंडे के बल पर शायद अपना दबदबा बनाये रखा... बाकियों का कुछ कहना कठिन हैं. डॉक्टर्स की पिटाई अभी भी होती रहती हैं.  मोहल्ले का मेनगेट बंद था और उसकी चावी एक छोटे बच्चे के पास थी जो गली में टहल रहा था. गेट के बाहर एक सफाई कर्मचारी आया हुआ था. वो गली के माहौल से जबरदस्त प्रभावित दिखता था. उसे लगा ...

बबली, दिलशाद और कोरोना

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सुबह सुबह से ही पुलिस की पाँचवी चौकसी लग चुकी थी. लोगों का जत्था सायरन की गूँज सुनते ही दरवाजे के भीतर को हो लेता था और आवाज़ के शिथिल होते ही लोग बहादुरी के साथ दांत दिखाते हुए बाहर आ जाते थे और बतियाने लगते थे. विभिन्न बुद्धिजीवीयों का मानना हैं की देश एक अति दुर्लभ स्थिति से गुज़र रहा हैं. आने वाले दिनों में भारत की अर्थव्यवस्था बड़ी चुनौतीयों के साथ गुजरेगी. दुनिया भर में अब तक 17 लाख से भी ज्यादा लोग कोरोनावायरस से ग्रसित हो चुके हैं और 1.2 लाख से ज्यादा लोगों ने जान गवा दी हैं. करीब एक तिहाई विश्व की जनसंख्या को 'सोशल डिस्टैन्सिंग' के तौर पर घरों से निकलने की पाबंदी हैं. भारत भी इसी तर्ज पे हैं. ये काफी हद तक कारगर हुआ हैं. और देशों की अपेक्षा भारत में अभी तक दास हजार केसेस ही सामने आये हैं. हालांकि हमारे स्वास्थ्य व्यवस्था की बंजर हालत के चलते हम अभी तक दो लाख टेस्ट ही कर पाए हैं. वही अगर दूसरे देशों की अपेक्षा अमरीका 24 लाख टेस्ट कर चुका हैं...  बबली दूध आदि सामग्री लेने बाहर जाते वक़्त मास्क इसलिए नहीं लगाती की उसे लगता हैं की औरों ने भी तो नहीं लगाया हैं. वो ज...

प्रकृति से ताल

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हाल ही में फैली तबाही के बाद चाइना के पशु बाज़ार को खूब जद्दोजहद से कोसा गया. ये बोला गया की वहाँ के लोग कुछ भी खाते हैं, वगैरह वगैरह.. ये सब तब हुआ जब भारत में और विश्व के अन्य देशों में खुद अन्य पशुओं का व्यापार किया जाता हैं. वो बात अलग हैं की वहाँ पर भोग किये जाने वाले पशु वहाँ की संस्कृति और भूगोल से अलग हैं. भारत के सन्दर्भ में ही देखा जाए तो हमारे यहाँ पशु बाज़ारों की दुर्दशा सोचने समझने योग्य हैं. पशुओं के रख रखाओ पर खासा ध्यान दिया जाना चाहिए, ये भी की उनसे 'मानवीय' सुलूक किया जाए. ये कितनी अजीब बात हैं की इंसान को केवल अपना दर्द ही दिखाई पड़ता हैं. हम इंसान एक जीवित पशु की चमड़ी उकेल कर उसका उपयोग कर सकते हैं, बिना उसकी दर्द भरी चीखो को कोई तवज्जो दिए बगैर. वही कोई इंसान के साथ ऐसा व्यवहार किया जाए तो हमें इसका खेद होता हैं और फिर हम मानवाधिकार की बातें करते हैं. ऐसा क्या हैं इंसान में जो की इसकी जान ज्यादा बेशकीमती हैं अन्य पशुओ की अपेक्षा? ऐसा क्यू हैं की पशुओं को चिड़ियाघरो में कैद कर के रखा जाने में कोई नैतिक संकट नहीं हैं, वही किसी इंसान को जबरन किसी जेल की चार दी...

Nature Justice

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The pandemic that we are observing right now should end up making us compassionate towards nature, optimal resource consumer, a thoughtful and a better human being. The tiring lockdown must make us think about the lifestyle that we have been living in. We need to introspect how we are interdependent on each other for all walks of life. Be it the small mobile stall run by the migrant worker or the greater facilities that we have come to enjoy on account of infrastructure and technological development, there is the differential utility of each one of them out there. For the last few decades, we have been increasingly observing the taking over of the air, water and noise pollution in our lives. These have been causing havoc in our day to day lives and were responsible for many side-effects. They have affected our health by making us sick and caused us mental distress. We have come to accept urbanization as the new normal, yet almost knowing that we are letting go of the basic element o...

9PM, 9 minutes

What happened yesterday at 9PM was unprecedented. Millions of Indians switched off the lights of their houses and lighted candles and earthen pots while remaining stuffed in their houses. It happened throughout India and included several sections of the society. It is possibly the largest social experiment done anywhere in the world with just a 2 days prior notice by the Prime Minister of the country in a short 9-minute video. No campaign for months was required, no one was forced to do it. It happened automatically and in harmony throughout the length and the breadth of the country. Millions of images and live videos were uploaded and shared by the people and have set a new kind of positivity not only within the country but to as well the grief-stricken world. Indians, who majorly belongs to the lower middle class and lower class, should be thanked to create this wave of excitement and enthusiasm. The event was symbolic in nature. There was NO scientific reasoning for its dir...

Hook the Brotherhood

The COVID19 has brought to us a pandemic of global nature. It sees no boundary and no ideology, no race, no class. The idea of the human as a common race is on the surface, boiling and glittering. Your physiognomic features do not matter. Your language doesn’t matter. Your distinct culture does not matter. What matters is that you are susceptible to the wrath of nature, although unequally by virtue of your privilege. There are different contours that have come up in the lockdown. One, those who are perfectly safe within the tall boundary of their premises; they can opt for multiple resources for their entertainment in the lockdown. They can do yoga, watch movies, read books and eat hot & tasty homecooked food. They have savings in the bank account that will last an eternity. Two, those who live in a caged house with the minimum availability of every bit of resources. They can have a decent sustaining lifestyle and in the event of an economic shutdown, they are less worried for ...