रेजोनेंस हो तभी
'तुम मेरे एक मित्र के अच्छे दोस्त हो सकते हो', उसने लिखके मैसेज भेज दिया अपने एक मित्र को. दोनों शायद अलग ट्रेनों में बैठे थे और अलग-अलग दिशा की ओर बढ़ रहे थे
एक नया गाना सुन रहा था. अपने एक करीब करीबी को भेजा तो उसने कहा की, 'कहा से ढूढ़ लेते हो ऐसे गाने'.. वही गाना उसने मित्र को भी भेजा, उसने कुछ प्रतिक्रिया नही की. अच्छा नही लगा होगा, या फिर गानो का शौख ना हो, मेरे जैसे.. क्या पता
क्या नियम है पहचान लेने के, उन्हें जो हमसोच है, एक जैसा सोचते है. ऐसे तो अकेले तंग हो जायेंगे, या फिर सभी ऐसे ही है और बस दूसरों के साथ रहने की झूठी हसीं हस्ते है. की बस कुछ ही बदनसीब है.
वो जब लाइब्रेरी के कमरे में आयी तो एक खुसबू हवा में छा गयी. उसने वही इत्र लगाया था, जिसे मैंने जामा मस्जिद के बाज़ार से खरीदा था, या ऐसा कहो की तीस रूपए की खुसबू उधार ली थी एक छोटी सी कांच की शीशी में. कुछ पसंद किया होगा दोनों ने ही.
क्या पसंद है, क्या पसंद नही है - ऐसे ही तो साथ बात है.. कुछ रेजोनेंस हो शायद, या फिर ख़ुशी ही रहे, शायद. ऐसे तो अकेले ही अच्छे. कोई भी हो. हां सारी बातों पे सहमति बने, ये तो अभी नही मालूम
मैं अपने साथ तो बातें कर ही सकता हू, अपने साथ सेल्फी भी खींच ही सकता हू, अपने साथ गाने सुन सकता हू, कुछ लिख के अपनी बातों पे मंथन भी कर सकता हू. मैं तो हूँ ना अपने लिए.
छोटे से जीवन में क्या फिर वही होने चाहिए तो आपके लिए दर्पण हो?
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