मरता मैहर?

कल जब बाबूजी ने बताया की बोरिंग में एक बूँद पानी नही आ रहा है, तो इसमें कुछ चौकने वाली बात नही लगी. मैहर शहर कभी हरियाली भरा था, चारो तरफ पेड़ पौधे थे. आज समय के गुजरने के साथ, इस शहर की हालत बदतर हो गयी है. शहर के भीतर के जो तालाब है वो सूखे हुए है. इसके बाद तीन सीमेंट फैक्ट्री शहर के बगल में मुँह खोले बैठी हुई है. सवाल ये है की आने वाली गर्मी के मौसम से बचने हेतु क्या कार्य किये गए है? अगर शहर के तालाब सूख गए है तो इनसे इस तरह मुँह क्यू मोडा गया और संरक्षण के कार्य क्यू नही किये गए? वायु प्रदुषण की समस्या ज्यो की त्यों क्यू है? सरकार की एयर मॉनिटरिंग रिपोर्ट के अनुसार जो वायु की स्थिति है वे तीसरे कगार पर है. इससे चलते लोगों को सास लेने में तकलीफ होगी, अस्थमा और ह्रदय सम्बन्धी बीमारियों का सामना करना पड़ेगा. यदि तीन फैक्टरी चालू है तो इससे निकलने वाला प्रदुषण को कम करने के लिए क्या उपचार किये गए? मैहर की हरियाली क्यू मरती जा रही है? क्या ये फ़ैक्टरिया सिर्फ रोज़गार का साधन मात्र है? यहाँ के धरती में होने वाले लाइमस्टोन को बेचके पैसा छापना ही इनका काम है? जल जंगल ज़मीन को जो निरंतर हानि पहुंच रही है, उसका क्या?

मैहर के लिए कहना चाहिए की यहाँ पर शारदा माँ का प्रसिद्ध मंदिर है जो की 51 शक्ति पीठों में से एक है. साल भर लोग दर्शन के लिए आते है. इसके अतिरिक्त अनेक पुराने मंदिर है. पन्नी खो नामक झरना भी है. इतनी अनुकम्पा के बावजूद लोगों की स्थिति में सुधार क्यू नही है? बची कुची टूरिज्म से कमाया जाने वाला पैसे का उपयोग कहा होता है? तमस नदी का अस्तित्व क्यू समाप्त हो गया? तीन साल पहले आयी बाढ़ को दोबारा आने से रोकने के लिए क्या किया गया?

समय रहते यदि इन प्रश्नों का उत्तर नही खोजा गया तो स्थिति गंभीर होने की पूरी आशंका है. हमें टैंकर के मत्थे जीवन यापन नही करना है. ये विकलांग करने वाली परिस्थिति है. पेड़ों को पुनः लगाना होगा. सभी घरों में जल संरक्षण के उपचार होने की आवश्यकता है. बोरिंग के पानी के उपयोग को नियंत्रित किया जाना चाहिए.

आखिर क्या बात है? या तो मैहर वासी एक गहरी निद्रा में डूबे हुए है जो की ये अपनी ही बनती मृत्युशैया को नकार रहे है अथवा इन्हे बारम्बार बेवक़ूफ़ बनाया जा रहा है. आखिर मैहर में धूल मिट्टी का प्रदूषण कब बंद होगा. वैसे भी ये केवल मिट्टी नहीं रही है. प्रत्येक दिन सुबह से ही ट्रक वाहनों का ताता बंध जाता है जो की मैहर के सीने को फाड़ते हुए, बीच सड़क से लगातार गुजरता रहता है. इतने वाहनों से होने वाला प्रदुषण जहरीली कार्बन और अन्य गैसों के विवरण को वातावरण में धूल के साथ धधोक देता है. इसे ही मैहर वासी न केवल सुबह चाय के साथ, दोपहर और रात खाने के साथ, बल्कि निरंतर हर एक सास के साथ अपने शरीर में प्रवेश कराते रहते है और मजे में रहते है. ये स्लो पॉइज़न है ज़नाब.

अब मैहर तीन तरफ से सीमेंट कारखानो से घिरा हुआ है. इनसे होने वाले प्रदूषण से जो वातावरण को हानि पहुंच रही है, उसका जवाब कौन देगा? एक दशक पहले का मैहर कुछ और था जब की भूजल के ख़त्म होने की समस्या हमे नहीं सताती थी. कुछ धूल थी तो उसको संभालने के लिए कई ज्यादा वृक्ष भी थे. आज ये हमारी आँखों के नीचे से ओझल होते जा रहा है और हम इस कगार पे है की गर्मी के मौसम से पहले ही लोगो को बोरवेल में पानी नहीं मिलता. ठण्ड कब आके चली जाती है पता ही नहीं पड़ता. इन्द्र देव जी ने बादलों के काफिले को मैहर के रास्ते ले जाने से इंकार ही कर दिया है. हमे विकलांग बनाया जा रहा है और हम एक दुसरे के मुँह को निहारने के अलावा और कुछ नहीं कर पा रहे है. हां, हम सभी लोग दिल्ली में होने वाली प्रदुषण की समस्याओं का मुआयना यूँ ही बड़ी तकल्लुफ से कर रहे है. और क्यों नहीं? क्यों किसी मीडिया चैनल को मैहर जैसे छोटे स्थान की परवा होगी की अपने चैनल में ये दर्शाये...

यदि ये कारखाने यहाँ की धरती में पैदा होने वाला लाइमस्टोन आदि खनिज पदार्थ निकाल कर कमाई कर रहे है, तो ये इनकी ही जिम्मेदारी बनती है की पर्यावरण में होने वाली विकृतियों का ख्याल भी रखा जाए. यदि ये ऐसा नहीं करते है तो ये बेईमानी है. शहर में चलना दूभर हो गया है. कोई भी आपके ऊपर से गाडी चला के जा सकता है. इस्पे प्रशाषण शांत क्यों है? क्या ट्रैफिक क़ानून बड़े शहरों के लिए ही बनाये गए है? वही दूसरी तरफ धूल मिट्टी का जबरदस्त क़हर. रीवा रोड के मार्ग से गुजरके गाड़ी चलाना खतरे से खाली नहीं है. ये तो एक एडवेंचर के सामान है. यहाँ टॉलीवुड की फिल्म ही बना ले आप. अरे इतनी धूल के बीचो बीच निकलना कोई आम बात थोड़े ही है. वही दूसरी तरफ हरनामपुर के मार्ग से सरलानगर की ओर बढ़ना अत्यंत कठिन हो गया है. ये धूल का तूफ़ान जाने कहा से आ टपका है. वही तीसरी ओर सतना और कटनी रोड. हमे चारो ओर से घेराबंदी करके घुट कर मरने के लिए छोड़ दिया गया है और अभी तक हमने कुम्भकरण की नींद त्यागी नहीं है.

चुनाव सर पे है. फिर शायद कई वादे होंगे. बड़ी बड़ी हस्ती आएँगी. रैली निकाली जाएंगी. नौटंकी होगी. नाच होगा. गाने बजेंगे. नोट बटेंगे. ढोल बजेंगे. रंग उड़ेगा. इसके साथ साथ दुनिया एक कदम आगे बढ़ेगी और मैहर वही का वही गोबर के सामान गोबर ही रहेगा और यहाँ से पढ़े लिखे युवा पलायन करने को मजबूर होंगे. शर्म की बात है. यदि आपको ये सब मंजूर है, तो ठीक बात है, शौक से मरिये...

आप शायद ये सोचते होंगे की मैहर को ही इस पुस्तक का हिस्सा क्यों बनाया गया. दरअसल बात सीढ़ी सी है. मैहर की समस्याएं अन्य शहरों से अलग नहीं है. सारे शहर-गाओ एक दुसरे से जुड़े हुए है और आपस में एक दुसरे को बढ़ाते चढ़ाते है. यदि विकास मैहर या कही दूसरी जगह होगा तो इसका प्रभाव अन्य जगहों में पड़ना ही पड़ना है. नींद सबकी साथ में टूटेगी...


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