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Showing posts from June, 2020

The Place

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The city is ailing. It is deserted at will of the most dominated species, the humans, which at its behest has turned greedy. The air could not refresh the lanes and pores of the city as it could not penetrate the high toned buildings which stands in its way. The animals are heavily dependent on the usage of black technologies. These would serve the most greedy more. It emits high amount of carbon and other toxic gases into the air further polluting it, taking back its purity and dampening it. It stinks of shit of all the species who are stuck here. The drains are overflowing. The city is overpopulated. The green spaces has been upturned & uprooted bloodily either to serve the riches or arrange for dwellings to accommodate more. They live like slaves and still proud themselves with names and titles. It is a misery that the unknown poison is slowly seeping into the veins of the livings. They all are becoming dull and hopeless. The non-living is long dead and rotten. Flowers do no...

प्रयागराज, हवाईजहाज और कोरोना

प्रयागराज के ऊपर हवाई जहाज आता त्यों मालुम हुआ जब बादलों के काले घने कोहरे के बीच गंगा जी के दर्शन से ह्रदय गदगद हो उठा. नदी का पानी मिट्टी से रिझा हुआ पीला दिखता था और नदी सांप जैसे गुमराई कोसों दूर तक फैली दिखाई पडती थी. ज़मीन दूर दूर तक समतल दिखती थी. जहाज ने उछल के लैंडिंग की और झट से आसमान की उचाईयों को लांघ कर, ऊपर जहाज में बैठ के दिखने वाले चींटी नुमा शहर के हम भी हिस्सा बन गए. धरती में आते ही आँखों का हिपनोटाइज़ गायब हो गया. जिंदगी वापस से यथार्थ में प्रवेश की - आदमियों के बीच, समाज और रीतियों के बीच, ईर्ष्या, ढोंग, मुहब्बत और ग्लानि के बीच. ऊपर से बस यही लगता था की इंसान की कोई औकात ही नहीं हैं और हम अपने घमंड में चकनाचूर हुए मदमस्त हैं. कुदरत के सामने आदमी कितना छोटा हैं! इस धरती का रचयता वसतुतः कोई एक व्यक्ति हो ही नहीं सकता. इसे सदियों से सभी निर्जीव और जीवित प्राणियों के योगदान द्वारा बनाया और बिगाड़ा गया हैं. नीचे आते ही जहाज के भीतर खलबली मच गयी. मिनटों में ही सभी ने अपना अपना सामान ऊपर के खाचे से निकाल लिया. उनके लिए यात्रा की समाप्ति हो चुकी थी. हालाकी अभी भी जहाज के पट ...

सिविल अस्पताल

जी आज मैहर नगर के सिविल अस्पताल के दर्शन हुए. दृश्य उपद्रवी थे. सिविल अस्पताल सरकार द्वारा जनता के पैसों से कार्यरत हैं. यहाँ प्राइवेट अस्पताल के मुकाबले कम मूल्य में जनता का इलाज संभव हैं. ऐसा भेद इसलिए की भारत समाजवाद का पक्ष करता हैं. भारत के संविधान में समाजवाद का दिशा निर्देश हैं. इससे ये होगा की भारत का एक जो बड़ा हिस्सा निचले स्तर में हैं और गरीबी की चपेट से अपने आप को निकाल नहीं पा रहा हैं, उसे कुछ राहत मिलेगी. इसीके चलते हमारे यहाँ कई सारी नीतियाँ और स्कीम ऐसी होती हैं जो की समाज के पिछड़े हिस्से के लोगों को या तो कम दाम में या फिर मुफ्त में सुविधाएं मुहैया कराती हैं. मनरेगा जैसी स्कीम से लोगों को रोज़गार का साधन भी उपलब्ध हैं. इसके अतिरिक्त कर्जा माफ़ी की प्रतिक्रियाये भी सम्मलित हैं जो की आज वोट बैंक राजनीती का शिकार हैं.  एक व्यक्ति जिसने कभी सिविल अस्पताल में कदम नहीं रखा हैं, वो अगर इसके ढाचे की कल्पना करें तो मानवीय दृष्टिकोण से उसे क्या मिलना चाहिए? जाहिर हैं की स्वच्छता का एक ख़ास किरदार होगा, बाथरूम से लेकर मरीज के साथ आये लोगों के उठने बैठने की व्यवस्था होनी चाह...

चुप्पी

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एक मिथ्या, एक पहेली में उनने चुप्पी सांधी हैं वो पलकें मूँदे रहते हैं इस काली काली आंधी में वो हकलातें हैं हफलातें हैं और कंठ का मान गवाते हैं ये चुप्पी भरी बेचैनी वो खुलके गले लगाते हैं क्यू खून नहीं खौलता उनका क्यू शामें उनकी हैं हरी हरी हैं माटी का दामन खून हलाल क्या निर्धन धन को खाते हैं रेशम स्याही से अपनी कलाई में उनने गुदवाया हैं कुछ बड़ा बड़ा शीशे के प्रत्यक्ष दिन दिन भर शान-ओ-मिजाज़ खूब जताते हैं रात की लपटें आय हाय देखो कितनी बर्बरता छल्ली किया हैं स्वर्णिम संसार वो तब भी रौब जताते हैं

Samurai

He carried a sword and a strange feeling of empathy. While others saw merriness and joy, he saw deprivation and sorrow. It was unbearable for him. Alas, he has a human body and horsing senses that would hit him doubly. He could forsake neither and suffer alone.  When he died fighting an unknown bloody war, he was given a second of bent heads by some and the world took no more to move on. Even time didn't stop. When it rained, the soil had the fragrance of him. On first sight, it feels love. That's a trap. Rational minds drink it for a while and forget. The emotional kinds are stuck and fell for it.  The symptoms can be nostalgia, loneliness, partial pessimism, incessant courage, vision and more love. Look for the shaggy lost faces or the overlaughing ones. They can breathe long, deep and calmly. They often stop to smell the flowers or the gaze of the sky. When they seldom talk, it is some kind of brotherhood shit and the so-called peace & harmony which no one cares. ...

Sustainable life

There is a great mismatch between the technologies that we are blindfolded out rolling in the market to cater to the non-analytical consumeristic desires of the people and the larger interest of the increasingly clogging spaces in the society. While it is still morning and you are fresh awake, faraway somewhere in the street there is a motorbiker riding speedily in a certain mood and trying to warn the commoners to stay aside by playing a tune to the horn of the vehicle, rather arrogantly and aristocratically. Suddenly you find yourself in a critical mess created by this complexity of the technologies. Until unless you have soundproof walls and a bigger house to disseminate the unneeded, distracting and maddening voices, you are bound to be doomed. In case you are part of the community permanently since you own the accommodation, you are fated with a pang of chronic guilt and lifelong frustration. All this is because we have to run the economy with a single goal of creating wealth. ...

I apologize

All my shine has been lost as my habits had been so abominable. I look pale and ugly. My skin has dried. My tooth has decayed. I lost my hair. My backbone is bent and my body is deformed. I feel no taste in my tongue. Extreme sour, pungent and sweet food has killed my digestive system. I could not walk straight and have to move slowly like a tortoise. My eyes are always red with blood. My body constantly shakes. I am helpless. I regret it so deeply. I regret my habits. I regret my thoughts. I regret my own decisions. I regret my company. I regret my addictions. I regret my false pride and false ego which lasted for no seconds and left me alone. My language has been destroyed. When I talk, I could not find optimism but fault findings and disgustion. I have bad thoughts filled with anger, greed, enmity and lust. I despise everyone. I help no one. I am not grateful. I am thankless. I remain quiet in the face of oppression. Still, I could not die. I could not stop breathing and leave th...

जल समस्या

लगभग आधे भारत से जल समस्याओ की खबरें आ रही है. बेरोक जल के उपयोग किये जाने के कारण, थर थर बहती नदिया सूखने की कगार पे है. कई नदियों पे इतना अत्याचार हुआ की उनका अस्तित्व होने का कोई लाभ नही. जैसे की बंगलौर में बहने वाली एक नदी कभी कभी आग पकड़ लेती है. कारखानों से निकला ख़तरनाक पदार्थ धड़ल्ले से नदिओं में जाने दिया जा रहा है. साल दर साल नदियों का महत्त्व कम हो गया. जल प्रदुषण आम बात हो गयी और सर्प के भाती टैंकर्स हमारे मोहल्ले में नाचने लगे है. जहा कुए थे उनका पानी बचा नही. ये एक मानव निर्मित समस्या है और इसे कत्लेआम का दर्जा दिया जाना चाहिए. मुल्ज़िम है पूरी क़ौम. हर वे व्यक्ति जो की नदी प्रांगण से मुँह फेर के गुज़रता गया. हम सब मुल्ज़िम है और जल्द ही प्रकृति इसकी सजा सुनाएगी. ज़मीन के नीचे जो जल श्रोत है वे तेजी से ख़त्म होने लगे है. देश की एक तिहाई धरती आज मरुस्थल बंजर है. किसान की समस्या एक कड़वा सच है. ये बात उतनी ही गंभीर है जितना की देश को आतंकवाद से खतरा. फर्क ये होगा की अब लोग प्रकृतिक आपदा से मरेंगे और नही मरेंगे तो एक आभाव जिंदगी जियेंगे. और सबसे ज्यादा अभागी है आने वाली पीढ़ी जिस...