'लोग क्या कहेँगे'
नमस्कार,
सुशील कन्या अर्थात लम्बे बाल, फेयर एंड लवली चेहरा, शांत स्वाभाव वाली गुड़िया रानी का बलात्कार कर दिया गया. उसके बाद उसे मार दिया गया और बेरेहमी से जला के शहर के सूनसान कोने में आधी रात को फेंक दिया गया. बेचारे लड़के देर रात तक पी के टुन्न थे. सुशील कन्या देख अपना आपा खो बैठे थे. खबर ने मार्किट में खूब नाम कमाया. लोगों का खून भी खौला. मीडिया ने जम कर नौटंकी रची. नेताजी परिवार वालों से मिल आये और लटके चेहरे के साथ फोटू भी ट्वीट की. सबने अफ़सोस जाहिर किया. दो दिन बीत चुके है. जिनके बच्चे लड़के है, उन्हें ज्यादा फर्क नही पड़ा. समाज को कोस देने भर से उनका काम चल गया. जिनके घर में बच्चियां और बहने है, उन्हें तालीम दे दी गयी है की इस आज़ाद देश में भी उन्हें पूरी आज़ादी नही है. संभल के रहना होगा. बालिग़ होने के बावजूद भी उन्हें स्वतः गलतियां करने की अनुमति नही है. उन्हें समय से अपने कक्ष में आना होगा, लड़को से दूरी बनानी होगी इत्यादि.
अब सब भूखे है और इस खबर से ऊब चुके है. वापस से थक हार कर पुराने रवैये में आने वाले है. आप, मैं, हम सब. We make the society. कृपया आदमी जात को अकेले मत कोसे. उन्हें और उनकी मर्दानगी को सदमा लग सकता है. हमें बचपन से यही बताया गया है. हम बलवान है, धर्म रक्षक है, घर का लालन पोषण भी हमी को करना है. नही कर पाएंगे तो 'लड़की' कहलायेंगे और प्यारे दोस्त हमें उनसे दूर कर देंगे. लड़की तो बस सुन्दर होनी चाहिए और खाने बनाना आना चाहिए.
बहरहाल उन कन्याओं और बालकों का क्या जिनके साथ बचपन में ही दुर्व्यवहार हो जाता है और उनका इस हादसे से मानसिक परिवर्तन हो जाता है. वो जीवन पर्यंत इसी सदमे से उभर नही पाते... खैर.. आवाज़ उठाये की वही जरिया है, पताका लहराए की वही जरिया है, समाज तो बस है की यही कहता आया है 'लोग क्या कहेँगे, लोग क्या कहेँगे'..
आपका,
'लोग क्या कहेँगे'
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