मन वन नहीं लगता मेरा

मन वन नहीं लगता मेरा
मन, हां नहीं लगता मेरा
काम... काहे का काम
काम फ़ालतू लगता है कभी तो
कभी कम, कभी बहुत ज्यादा
काम फ़ालतू लगता है मुझे...

लोगो से दूर भागता हु अब
इसलिए की क्या फायदा
कानून इतने है इनके
कही कुछ कह न दे
और फिर
वो अनजान रहने दो, यहाँ पानी पानी होता है
हर बार नहीं
लेकिन कई बार

सच बोलता हु
होने वाला कुछ है नहीं
नहीं मुझसे नहीं
मेरे काम से...
पैसा पैसा करती दुनिया
पैदा हुआ तब से यही शुरू
चिड़िया होता..
कहा चिड़िया
साला पिंजरे से डर लगता है
इंसान होकर, वैसे तो कुछ ख़ास आज़ाद नहीं
क्या मालुम...

लोगो को जो करना है
वो वह करते ही है
और बोलते है, भाड़ में जाए दुनिया
फिर?
फिर कुछ लोग बेवजह परेशानी उठाते है
और किच पिच आपके लिए
साधू बनु तो जंगल कहा
घर बैठे मुझे बनना नहीं

किच किच... की तूने ऐसा क्यू किया
महाशय, क्या मालुम
कुछ तूने किया, कुछ किया मैंने
कुछ हिस्सा सरकार से... कुछ किस्मत की चोट
और फिर बाकी बड़ी कम्पनिया है ही

काहे की दुनिया, काहे की दुनिया दारी
मारा मारी मचा रखी
कोई न ले जिम्मेदारी

काहे की दुनिया, काहे की दुनिया दारी
न तुम ही रहोगे, न मै ही

मन वन नहीं लगता मेरा

जाने दो

जाने दो
थोड़ा कटा है, थोड़ी और काट लेंगे
पिंजरा ही सही, कभी तो खुलेगा ही

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