कंबल


सुबह ही बड़ी बूंदो की बारिश हुई. अभी भी पानी टिपटिप करके गिर रहा हैं. छत गीली हैं. मौसम हलके सफ़ेद कोहरे से लदा हैं. मंद ठंडी हवा आहिस्ता आहिस्ता बेह रही हैं. सड़कें खाली हैं. कोई ज्यादा आवाज़ नहीं आती. पारा एक को छूये पड़ा हैं. नवीन और शुद्ध वातावरण से चिड़ियों का ताता बँधा हुआ हैं. कितने ही दिनों बाद आज बारिश हुई. बारिश...

थोड़े देर में, एक आदमी बड़े घोर ध्वनि में रोता सा गलियों में से घूमने लगता हैं. बडी तेज सकुचि सी आवाज़ है उसकी. कह रहा हैं की कोई उसे कंबल दे दे... कहता है ठण्ड लग रही हैं. उसके छोटे बच्चे काँपते है कहता है. वो रोता जाता है, चलता जाता है. चिड़िया सब चुप होती जाती है. उसकी आवाज़ के अलावा कुछ अब नहीं सुनाई देता. बड़ी दुर्बल करने वाली ध्वनि है. कुत्ते रात की आधी नींद से जाग कर भोकने लग गए और पानी से बचते अपने छज्जों पे बैठे बैठे ही गरियाने लगे. ये एक विशेष बात हैं. हिन्दू समाज जाती प्रथा को मानता हैं और उसे ऊंच नींच से तौलता हैं. यहाँ इस इंसान को एक गली का बेघर जानवर भी दुत्कार देता हैं. गरीब अछूत. आदमी को बीच बीच में ज़ोरो की हिचकी आती हैं. उसका स्वर भी बड़ा तेज था. गला सूखा होगा? बड़े देर से चिल्लाता होगा? थकता क्यूँ नहीं? रोता एक ध्वनि से हैं. आवाज़ में अजीब सा कटाक्ष छुपा हुआ लगता हैं. जैसे उसे मालुम हैं की उसे यही करना हैं और यहाँ से जैसे कुछ बता कर निकल जाना हैं. जैसे गीले मौसम के बीच कुछ आग जलाने आया हो. 

उसकी आवाज़ दूर से गूँजती हुई अभी भी आती है. "कम्बल.. बच्चे.. गरीब.. नौकरी.. पैसा.. देदो..". मैं अपने कंबल में चैन से घुसा हुआ उसके जाने का इंतज़ार कर रहा हूँ. जबसे आया हैं मन उसपे ही गवारा हैं. मैंने आसपास एक झूठा मानसिक कवच बनाया है जिसमे मैं बाहर होने वाली आतताओ से मुँह छुपाया गदगद बैठा रहता हूँ. मैं न ये मानना चाहता हूँ की बाहर कुछ तो होता है, जो भी होता हैं, और न उसकी जिम्मेदारी का बोझ उठाना चाहता हूँ. लेकिन मैं ये सोच रहा हूँ की लोग कितने निर्दयी है जो उसकी अभी तक न सुने. लोग. मैं नहीं. मैं चैन से हूँ. मजे में. लोग ज़ालिम हैं.

बारिश तेज़ हो गयी. बूंदो की टीने पे थप थप गिरती आवाज़ ने उसकी भरराई आवाज़ दबा के कुचल दी. हिचकिया, मिमीयाना, रोना, बंद हो गया. थोड़ा देर में मैं अपने कवच में सुरक्षित वापस चला आया. हवा जैसे कोई कटघरे से आज़ाद हो गयी. लोगों का डर दूर हुआ, की कोई भी उनसे अभी तो कुछ सवाल नहीं पूछेगा. कुछ एक घाव लगाकर वो आदमी जाने अब कौन सी गली में लुप्त हो गया. चिड़िया वापस चहकने लगी. मौसम वापस सुहावना हो गया.
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