बारिश

'बच्चा लोग जल्दी करो, आज बरसेंगे... मौसम बनाये हुए हैं...' - ये अनजानी आवाज़ सुनते ही सडक में थोड़ा खलबली मच चुकी थी. सुबह से ही आज अँधियारी हैं. हलकी हलकी ठण्ड और गलन रही आयी. आसमान में घने बादल आ जा रहे थे. देखते ही देखते बूँदे छप छप करती हुई ज़मीन में गिरने लगी. लोगों के पैर भी गतिशील होने लगे. कोई मदमस्ती में अपनी गति नहीं बदला और कोई भागने की कगार पे आया. सोये हुए दुकानों में से आदमी लोग अजीब से रंगोंभेष में आये. कोई अपने आप खिलखिला उठा, कोई जबरन ही चिल्ला पड़ा और कोई बस गिरती बूंदो को निहारते रहा.

बारिश के तेज़ होते ही सड़क को गीली चादर ने ओढ़ लिया. पैदल चलने वालों ने और दो पहिये वालों ने अपनी जात और धर्म का ज़िक्र किये बिना, ऊंच नींच की खाइयो से परे, धम से जल्दी से रूक गए और अपने अपने करीब के कोने पकड़े. वे वहाँ साथ खड़े होकर अनजाने व्यक्तियों के साथ उसी एहसास में डूबे रहे आये, बारिश को देखा, सुना, महसूस किया.

बारिश कुछ ही समय के लिए आयी थी. शहर में महसूस किये जाने वाले अनबन और तनाव से सबको मुक्त कराना चाहती थी. जिनके विचार मेल नहीं हो रहे वो भी तो बारिश से एक तरह जूझेंगे? परेशानी सिर्फ उन्हें ही होंगी जिनका आशियाना सड़कों पर हैं... शायद बारिश भी उनसे भेदभाव करती हैं... छतो से गिरते पानी की टप टप आवाज़ के बीच, सड़कों के पानी से भरे गड्ढों के बीच मन में हलकी ग्लानि के साथ लोगों ने अपनी दिनचर्या की कमान संभाली...
~~रोहित 

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