ऑफिस झील

आज लहरें खूब आती थी पानी में. हवा मंद गति से चल रही थी. आसपास जो पेड़ थे उनकी टहनिया हिल रही थी. पत्ते नृत्य कर रहे थे. अमिताभ वहा अकेले ही खड़ा हुआ था. लहरें थी, पेड़ थे, हवा थी और वो...

आज छुपके अकेले ही निकल आया ऑफिस से. निकलते ही अपने मोबाइल फ़ोन को पावर बटन दबा के बंद कर दिया. उसने अपने बैग को जिसमें की लैपटॉप था, एक कंधे से लटकाया और नीचे देखते हुए चलने लगा. चलते चलते उसने सोचा था की आज शहर किनारे वाली झील को जायेगा. वो जब परेशान होता हैँ तो कभी कभार ऐसा ही करता हैँ.

मन कुछ सोच रहा था और ख्यालों में खोये खोये ज़मीन में चिपपी ढूढ़ रहा था. एक पत्थर मिला, लेकिन गोल था. उसे फेक दिया और दूसरा उठा लिया. उसे ऊपर नीचे पलटा के देखा और झील के पास गया. घुटनो को झुकाया, हाथ पीछे करके तेजी से पत्थर को पानी पे फेका. पत्थर पानी की सतह पे तीन बार कूदा और आखिरी टिप पे डाईव मार दी. पानी में विलीन हो गया. उसके बाद वैसे ही वहा खड़ा रहकर और पानी में आयी तरंग को देखता रहा. हवा चलती थी. पत्ते नाचते थे. टहनिया हिलती थी. पिछली बार आया था तो कुछ गुलाबी गर्दन वाले बगुले भी थे जो पानी पे खेल रहे थे. आज नही हैँ वो तो झील सूनसान दिखती हैँ. पिछली बार जब उसने पत्थर फेका था तो कू कू करके उड़ गए थे और वापस पानी की तरफ आ गए थे.

तरंग छट गयी. अमिताभ की इच्छा हुई की एक और पत्थर फेके और फिर से पानी पे पत्थर को चलवाये. कितना मस्त लगता हैँ जब कुछ चीज पानी पे चलती दिखाई देती हैँ. इंसान के बस के बाहर हैँ ऐसा करना, इसलिए. वो चीज जो वे रोक नही सकता, कर नही सकता, उसे दूसरे को करते देख ताज्जुब मानता हैँ.

अमिताभ को घर गए छह महीने हो गए थे. आज जब लंच करते वक़्त वो अपने व्हाट्सअप के स्टेटस को देख रहा था तो उसने देखा की उसकी माँ ने भी एक स्टेटस डाला था. वो घर के बैडरूम में जो बिस्तर उसके बगल में खड़ी हुई थी और बैगनी रंग की शादी पहनी थी. अमिताभ हर बार अपनी माँ को रिप्लाई जरूर करता था जब वे फोटो दालती थी. माँ की तस्वीर देख उसका दिल पिघल जाता था. यहाँ रिप्लाई करते वक़्त उसे कुछ सोचना नही पड़ता था. जब मन में आता था तो लिख कर कुछ भेज देता था. ज्यादा इच्छा हुई तो फ़ोन कर लेता था. माँ से कैसा घमंड, कैसी मिथ्या. कभी कभी उसके माँ के फ़ोन में नेटवर्क नही होता था तो आवाज़ नही आती थी. इसलिए वो कहती थी की बाद में करो बेटा. आधी बात की चुभन फिर दिन भर सताती थी. रात में फ़ोन पे पहले यही कहता की 'अरे यार आपका सिम कार्ड बदलवा लो'... पापा पीछे से हस्ते से. माँ कहती थी की किस्से बोले करने को. उनको नही आता ये सब.

अमिताभ ने आज रिप्लाई नही किया था. जो जब माँ की तस्वीर देखा तो उसे उनके चेहरे पे झुर्रिया दिखाई दी. मेहँदी छूट जाने से केश सफ़ेद दिखाई दिए. उसे अचानक से भीतर में कपकपी हुई. आँखें भर सी आयी. मोबाइल के अंदर डूब गया था देखते देखते, सोचते सोचते, की किसीने ऑफिस में पीछे से आवाज़ लगाई, 'व्हाट् आर यु डूइंग ब्रो'... उसने झटके से मुंडी उठायी तो दुनिया वैसे ही भागती दिखाई दी, शोर कान में बजने लगा. ए सी चल रहा था लेकिन उसके माथे पे पसीना आ गया था. उसने खाना आधा छोड़ना चाहा. फिर माँ की याद आयी की खाना कभी नही छोड़ना चाहिए. उसने दाना दाना चाट लिया.

शाम ने रुख बदल लिया था. बादल अपनी लालिमा खो रहा था. आसमा का एक कोना ही अब गहरे लाल रंग से सना था. बाकी जगह नीले रंग की चादर आने लगी थी. वे कुछ देर तर वही किनारे बैठा रहा. झील को शोख रहा था. उससे शांति की प्रेरणा लेता रहा...



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