शाम हो गयी थी

शाम हो गयी थी
थका हुआ दिन था, बाहों में कसमसाता हुआ
अक्सर शाम होते होते, "ऑफिशियली" कपडे बोझ लगने लगते है
मन में कई सारी बातें टेप रिकॉर्डर की तरह बजने लगती है
और कभी अच्छे मूड में, मै गुनगुनाने भी लगता हु

शाम हो गयी थी
शाम ने शमा आसमान में लपेट रखा था
सूरज लगभग अपनी लालिमा समेटे हुए जा ही रहे थे
ऐसे में याद आया की भूख ने दम बिगाड़ रखा है
अपनी स्कूटी से लौटते वक़्त
घर के पास जो डोसे की दूकान है, वहाँ मै रुक गया
गाडी स्टैंड में लगाते ही मोबाइल को हाथ में लिया
और दुकानवाले से एक डोसे की गुहार लगा दी

पता नहीं क्यों मोबाइल का चस्का चढ़ गया है
कुछ काम हो न हो, चंद लम्हो में एक बार देख ही लेता हूँ
हां जब भी देखता हूँ, और फीका पड़ जाता हूँ
फिर एक हवा सी चली,
तो हाटों से अपने बाल समेटे
नज़र मोबाइल से हटी ही थी
की आह भरते हुए
अपनी झुकी हुई गर्दन को उठती हुई जिंदगी से ठठोला
मोबाइल हाथ में ही था
पर कुछ एहसास सा हुआ

सामने थी सैकड़ो इमारतें
इमारतों में रहते लोग, दबे और भागते हुए
और ऊपर आसमान में उड़ता हुआ एक पँछी
शान से अपने पंख फैलाये "ग्लाइड" कर रहा था
और फिर टकटकी लग गयी
लम्हा थमा रहा और मै उसे देखता रहा...

शाम हो गयी थी
शाम अच्छी थी

डोसा ख़तम किया तो देखा की "नीला आसमान खो गया"
और कई दिनों के बाद
एक शाम मेरी हो गयी

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