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Showing posts from July, 2018

The Beetle to be

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To be an orange beetle Found somewhere deep into the jungle the freshness in the air and unchaotic mind Among the greens, And a cloudy sky I want to be that beetle Pleasant And pleasantly sitting in an idle place All moments stopped, And yet with the constant change Look at yourself & forget your appearances Yes, look inside, the invisible one When you are one with the ultimate some For a moment, to a lifetime And the journey starts towards no end I understand what you aspire It is what that orange beetle says I want to be that beetle deep in the cave, and all the waves Deep but light light which enlights that is the beetle In an irrelevant place

तू कौन

अँधेरा छटेगा मौसम बनेगा दिल लगेगा मन उठेगा ये काली घटा ओ नीला समां पत्थर की इमारतें मेरा ये दिल मैं खिलखिलाया हवा लहराई मिटटी की खुशबू समुन्दर की लहरें रात ये रात चाँद और तारें पिया तू मेरी राजा मैं तेरा देख तू देख आदमी और औरत भाग रहे इधर उधर न जाने क्यूँ न जाने क्यूँ मैंने बिगाड़ा तो मैं सुधाराउँगा तू कौन ए लाचारी तू कौन ए लाचारी, ए लाचारी, तू कौन तू... ए...चल फुट

रुक जा ऐ जिंदगी

उस रात बहुत दुखी था मैं मन बहुत भारी था अकेलापन लग रहा था नींद नहीं आ रही थी सिर्फ अपने आप पर तरस कर रहा था ये क्या कर दिया जिंदगी ने मेरे साथ "मैं" ही क्यों? "मैं ही क्यों?" मन में बार बार गूँज रहा था साली गद्दार जिंदगी खाना नहीं खाया और लाचार होना चाहता था हे भगवान् कहा है तू इतनी पूजा की तेरी... इतने लड्डू चढ़ाये देख कितना दुखी हु मैं देख भगवान्... देख मूर्तियों में आँखें मिलाकर देखा बहुत चाहा की कुछ तो हो... एक दफा मूर्ती हिलाई भी... क्या करता कही से कोई आवाज़ आये तू बहरा हो गया क्या रे मेंरे भगवान् तू... गुस्सा और लाचारी ये कौनसी रिपोर्ट आ गयी ये क्या हो गया अब क्या होगा रात होती चली सब लोगो को नींद लग गयी थी मुझे भी मुझे भी... नींद आने वाली थी आने वाली थी... रे "ऐ जिंदगी गले लगा ले"... ये कौन फुसफुसाया "हारी बाज़ी को जीतना जिसे आता है"... "वो सिकंदर ही दोस्तों कहलाता है" . . आभास हुआ.. एक पेचीदा एहसास मैं ही क्यों? मैं ही क्यूँ? मैं... मैं सँवर जाऊँगा ये वक़्त गुजरेगा घटा छटेगी मिसाल बन...

To the distant cloud

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At a distance Over the hills Beyond the green Hang some clouds free While yellow light trying to penetrate, I understand that it is still daytime Through the sea of hazy clouds And these plains which are lying vacant Inducing my mind To reside along However here I am Peeking through my cage Reading days, page by page Hoping but hoping nothing Soothing but soothing nothing What I do of my age How I break this cage To become the cloud And cross these bounds Wait, wait O distant clouds Pick me up Also set my pace Don't make me drown Here I wear no crown At a distance Over the hills Beyond the green Hang some clouds free