हँसते क्यू नहीं बेटे?
हँसते क्यू नहीं बेटे?
थक गए हो क्या?
आज थक गए हो शायद...
निंदिया आय गयी ए माँ क्या बताऊ
काम से आते ही सो गया
और खाना? खाना नहीं खाये?
हम्म?
घर कब आओगे?
दिवाली आने वाली है?
घर कब आओगे?
की साहब मना कर रहे
कहते, दिवाली में काम रहेगा
कहते, ६ महीने पहले ही तो गए थे
कहते, ६ महीने पहले ही तो गए थे
पूरे दो दिन के लिए…
काम में मन नहीं लगता अब तुम्हारा... मन
कह दिया, घर तो जायेंगे साहब...
नहीं तो घर का दिवाली फीका रह जायेगा
की दिए तो जलेंगे, और अश्रू बह जायेंगे
खोया सा रहता हु इन दिनों
लोग कहते मैं हसता नही
कहते दुखी सा दिखता
पूछते की क्या हुआ
मुझे भी नहीं मालुम
नहीं मैं बीमार नहीं
सोता ज्यादा हूं
सपनो से डर लगता है
खामोशी भाने लगी है
रंगों को देख मन हल्का होता है
और घर में बात कर मन को सुकून मिलता है
कि किसी ने फिर पूंछा, क्या हुआ तुझे?
हँसता क्यू नहीं है?
नहीं घर की बात नहीं ये
किसी ने कुछ कहा भी नहीं
कुछ अधूरे सपनो के पीछे हू
कुछ अधूरे सपनो के पीछे हू
बस इतनी सी बात है…
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