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Showing posts from December, 2020

The last grain on the plate

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With the pandemic souring on our doors, it did provide the avenue of one good cause – letting go of the food wastages in magnanimous weddings due to the number of guest restrictions. It’s a social compulsion in India to hold bigger weddings and make it a life event by expending on decorations, clothes, people, and food. This industry is growing and with it the economic boost that it brings with it. In the morning when tons of food is wasted and thrown away, it casts poor on the record of a country dealing with severe malnutrition problem among the hungry populace. During several famines situation, Britishers had held Grand darbars and never shied in arranging the luxuries. This had antagonized the nationalists and the masses every time for the cause of independence. Now that we are independent, what has changed? Nothing… Every upper and middle-middle class Indian who has the luxury for extra food on the plate, think minimum before leaving it. No images of skinny feeble & dying chi...

हवा पानी बोलो बोलो

आज छह बजे उठे. जाड़े के दिन है तो आसपास की जगहों से बराबर चीज़ो की, गतिविधियों की, वार्तालापो की आवाज़े आती रहती है. पहली आवाज़ आज पानी के गिरने की थी. सामने वाली ईमारत की टंकी भर गयी है. पानी बेह रहा है. पानी बहे जा रहा है. बाहर भीषण शांति है. कमरे का पंखा बंद है. कमरे की खिड़की बंद है. मेरी आँख पानी के गिरने की आवाज़ के साथ खुल गयी. ऐसा लग रहा था जैसे की कही पे ज्वालामुखी फट रहा हो और उससे आग में भून देने वाला मलवा बाहर आ रहा हो. बेचैनी हो रही थी. पानी बस बहे ही जा रहा था. बिल्डिंग के लोगो ने अभी इसकी चेतना नहीं की थी. सो रहे है शायद.  कम्बल छोड़ मै उठ बैठा. "कितनी लापरवाही है बताओ!". हलकी ठंडक का एहसास हुआ. कम्बल एक तिलसमी चीज़ है. भारत में ये सबके पास नहीं होती. होती भी है तो सबकी उतनी कारगर नहीं होती. मेरी वाली रेशम सी महसूस होती है. ये बोरे की तरह गड़ती नहीं है. मैंने अखबार में लोगों को ठण्ड की चपेट से मर जाने की खबर पढ़ी है. " शहर में शीत लहर से तीस की मौत". हर रोज़ पानी के ख़तम हो जाने के बारे में भी खबर आते जाते रहती है. इस देश के आधे से ज्यादा लोगो को साफ शुद्ध पेय जल...

फूलवती-रामविहार

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फूलवती अब चालीस पार कर गयी है. वो अपने पति रामविहार जो की उससे सात साल बड़ा है और बच्ची पारवती के साथ दिल्ली की एक ईमारत में रहते है. ईमारत को बने हुए चार साल हो गए है. वे लोग यहाँ तब से है जब से इस ईमारत का बनना चालू हुआ था सन 2012, आठ साल पहले. तब रामविहार, मध्यप्रदेश में स्थित अपने घर से काम की तलाश में यहाँ चला आया था. वो पहले कुछ दिनों तक भटका और कही होटलों में बर्तन मांजे, कही पर रोटी बेली, कही सब्जी बेचीं, कही पर सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी मिल गयी और फिर कही जाकर के एक नयी बनती ईमारत में चौकीदारी का काम मिल गया.  पहले रामविहार अपने गांव के मित्रों के साथ रहता खाता था. एक कमरे में दस लोग रहते थे. बाद में जब उसे सिक्योरिटी की नौकरी लग गयी तो यहाँ अँधेरे कोनो में उसे अकेला महसूस होने लगा. बिल्डिंग में दिन में काम लगता था तो लेबर रहती थी. रात काटनी मुश्किल हो जाती थी. उसके बाद उसने फूलवती, पारवती और अक्षयप्रसाद को अपने पास बुला लिया. अक्षयप्रसाद इनका लड़का है जो की अपनी बी.ऐ. की पढ़ाई ख़त्म करने के बाद गुडगाँव के एक ऑफिस में दस हजार की नौकरी करता है. वो वहा अपने दोस्त के ...

Health Sector of India

Think about Imagine the Indian Army working without the nationalistic feeling, something not to give back to the countrymen and the deservedly outcaste and excluded people a sense of security but to get back with benefits as individual concern & to make money. Indian doctors have turned themselves into one such money making machines. The health sector is increasingly encroached by private industries with more number of hospital beds in private hospitals than government hospitals. There is a clear-cut urban-rural divide where the private health industries has colonized the urban areas leaving the vast majority of the Indian rural population at bay. This being said, Indians spend 63% amount of their income in the out of pocket health expenditure. This makes more sense if we tend to realize that India is still a land of poor. The vast majority of the Indian population is hovering around the poverty line and keep on shifting above and below the line.  Think once about what a rick...