खुसबू वाली साबुन
दो दिन हो गए थे भूल जाता था. पापा को बताना है की उन्होंने जो साबुन घर से चलते वक़्त मेरी बैग में दाल दिया था, हां वही खुसबू वाला, बड़ा अच्छा है. उसे मैंने तीन दिन पहले खोला. पहले तो उसने मेरी अलमारी को जीवन दे दिया. जब भी उसे खोलो तो बेल की फूलों की तरह पूरे कमरे को प्राण दे देती है. पापा ये साबुन अच्छा है. अच्छी खुसबू है इसकी. मोजा! नल पे पानी नही आ रहा आज. मोटर चालू करनी होगी. मैं जैसे ही बाहर निकालने को हुआ, सामने वाले कमरे में रहने वाले आयुष ने अपना दरवाज़ा खोल दिया. मैं रुक गया. उसके कदम सुने जो की सीढ़ी चढ़ रहे थे. फिर कट की आवाज़ आयी. उसने मोटर के स्विच को ऊपर कर दिया था. आलस था, इसलिए मेज़ के पास वाली कुर्सी में जाके बैठ गया. बिस्तर में पैर ऊपर कर लिए. पहले ऐसे ही बैठा हुआ था. फिर मोबाइल को तकल्लुफ दी. इंतजार करने के बाद सोचा की मंजन करता हू पहले. टूथपेस्ट को निचोड़ चुका था. आज का काम हो जाना था. लौटते वक़्त भूल जाता हू नया खरीदना. ये रीति कब से चले आ रही है. किसी तरह से उसे दबा दबा के आज का कोटा निकलवा लिया. इत्मीनान से मंजन करने का सौभाग्य रोज़ नही मिलता. बाल्टी में कल रात कपडे ...