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Showing posts from March, 2018

शाम हो गयी थी

शाम हो गयी थी थका हुआ दिन था, बाहों में कसमसाता हुआ अक्सर शाम होते होते, "ऑफिशियली" कपडे बोझ लगने लगते है मन में कई सारी बातें टेप रिकॉर्डर की तरह बजने लगती है और कभी अच्छे मूड में, मै गुनगुनाने भी लगता हु शाम हो गयी थी शाम ने शमा आसमान में लपेट रखा था सूरज लगभग अपनी लालिमा समेटे हुए जा ही रहे थे ऐसे में याद आया की भूख ने दम बिगाड़ रखा है अपनी स्कूटी से लौटते वक़्त घर के पास जो डोसे की दूकान है, वहाँ मै रुक गया गाडी स्टैंड में लगाते ही मोबाइल को हाथ में लिया और दुकानवाले से एक डोसे की गुहार लगा दी पता नहीं क्यों मोबाइल का चस्का चढ़ गया है कुछ काम हो न हो, चंद लम्हो में एक बार देख ही लेता हूँ हां जब भी देखता हूँ, और फीका पड़ जाता हूँ फिर एक हवा सी चली, तो हाटों से अपने बाल समेटे नज़र मोबाइल से हटी ही थी की आह भरते हुए अपनी झुकी हुई गर्दन को उठती हुई जिंदगी से ठठोला मोबाइल हाथ में ही था पर कुछ एहसास सा हुआ सामने थी सैकड़ो इमारतें इमारतों में रहते लोग, दबे और भागते हुए और ऊपर आसमान में उड़ता हुआ एक पँछी शान से अपने पंख फैलाये "ग्लाइड" कर रहा था ...

International Women’s day

Women & men complete each other in a society. They are no doubt interdependent. While the purpose of this article on the occasion of ‘International Women’s day’ has a special catalytic role not only in the social thinking to look at the lives of women but this, on a whole is going to uplift the whole society let alone the workplace... This has also let us snatch a small time from our busy ongoing life and to comprehend one of the basic issues that the world is dealing with at the “marginalization of women” & locking them down at certain roles. We have women like Indira Gandhi – The Iron lady, Kalpana Chawla who has risen against the prejudices of the society to prove herself and make the whole nation proud with their deed. This proves that given the equal opportunities similar to men in India, they will bring together a better world. We cannot talk alone about the role of women in anyone’s world because then it will be a half-truth. I cannot say that women are more tender...