सुनील और गणतंत्र दिवस
सुबह साढ़े पांच बजे होंगे की सुनील की नींद अपने आप ही खुल गयी थी. आँखें खुलते ही समझ में आया की आज कुछ और ही दिन है, की आज कोई त्योहार है. नहीं आज दीपावली नहीं है. आज होली, ईद या क्रिसमस भी नहीं है. आज गणतंत्र दिवस है. आज छब्बिस जनवरी है. हवा सर्द थी. सुबह ने अभी भी अँधेरे का आलिंगन नहीं छोड़ा था. रगों में जोश था. आज विद्यालय में सुबह सुबह हीं तैयार होकर जाना होगा. आज गणतंत्र दिवस का जश्न मनाया जायेगा. विद्यालय में सात बजे तिरंगा फेहरेगा! कुछ ही देर मे मासूम सी हवा में एक प्यारी सी आवाज़ हलचल करने लगी थी. घर के बगल में स्थित एक ग्रामीण विद्यालय में लाउडस्पीकर में से गीत सुनाई दें रहे थे. लता मंगेशकर जी के बोल थे, "ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी...". बोल सुनते ही मन में बॉर्डर और वहाँ तैनात सैनिकों की तस्वीरें सामने आने लगी. जोश दुगना हो गया. बदन में एक कपकपी दौड़ पड़ी. सुनील ने रात में हीं अपने कपड़े इस्त्री करके रख लिए थे. आज सभी लड़को को सफ़ेद शर्ट और पैंट पहन के विद्यालय जाना था. सफ़ेद रंग शांति और पवित्रता का प्रतीत होता है. सुनील ने अपनी कमीज़ में लगाने के...